शुक्राणु का स्वास्थ्य उनकी गति और हलचल (motility), संरचना और आकार (morfology) और वीर्य में शुक्राणु की संख्या (स्पर्म काउंट) जैसे कारकों पर निर्भर करता है। ऐसे कई कारक हैं जो पुरुषों की फर्टिलिटी को प्रभावित करते हैं। अनुवंशिकता, रिप्रॉडक्टिव्ह अंगों की संरचनात्मक समस्याएं (structural problems), इन्फेक्शन, प्रदूषण, तापमान, मानसिक स्वास्थ्य, नींद की समस्या, असंतुलित आहार, व्यसन जैसे कई कारक पुरुषों की फर्टिलिटी को प्रभावित करते हैं।
पुरुषों की फर्टिलिटी / स्पर्म क्वालिटी निर्धारित करनेवाले कारक :
शुक्राणु की क्वालिटी की जांच करने के लिए ‘सीमेन अनालिसिस टेस्ट’ किया जाता है। टेस्ट के लिए पुरुष का सीमेन सैंपल लिया जाता है। बाद में माइक्रोस्कोप के जरिए शुक्राणु की संख्या, वीर्य की घनता, मोटिलिटी और मॉर्फोलॉजी का परीक्षण किया जाता है।
मोटिलिटी क्या है?
फैलोपियन ट्यूब में स्थित स्त्रीबीज को फर्टिलाइज करने के लिए जिस गति से शुक्राणु अपना सफर करता है या जिस तरह मोटाइल रहता है, इसे ‘स्पर्म मोटिलिटी’ कहा जाता है। शुक्राणु की मोटिलिटी कम होनेपर वे अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाते। या यदि हलचल अच्छी नहीं है, तो शुक्राणु स्त्रीबीज में प्रवेश करने में विफल हो जाते हैं। वे स्त्रीबीज फर्टाइल नहीं कर पाते। इस तरह गर्भावस्था असफल हो जाती है। गर्भधारण के लिए शुक्राणु की मोटिलिटी ५०% होना जरुरी है।
‘स्पर्म मोटिलिटी’ को 3 तरीकों से मापा जाता है।
- प्रोग्रेसिव्ह मोटिलिटी : शुक्राणुओं की तेजी से और सीधी दिशा में चलने की क्षमता को ‘प्रोग्रेसिव मोटिलिटी’ कहा जाता है। वन्ध्या पुरुषों में अक्सर शुक्राणु की गति फ़ास्ट फॉरवर्ड नहीं होती है। शुक्राणु टेढ़ी-मेढ़ी दिशा में (ज़िगज़ैग) यात्रा करते हैं। या फिर एक ही जगह पर गोल-गोल घूमते हैं।
- नॉन प्रोग्रेसिव्ह मोटिलिटी : इस प्रकार में, शुक्राणु गतिशील होते हैं लेकिन आगे नहीं बढ़ सकते। एक ही जगह पर व्हायब्रेट होते है।
- इमोटाईल स्पर्म : यह एक ऐसी स्थिति है जहां शुक्राणु गतिहीन होते हैं। वे बिल्कुल हिल नहीं सकते। कुछ केसेस में सारे शुक्राणु भी इमोटाइल हो सकते हैं।
‘मॉर्फोलॉजी’ क्या है?
यदि शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया (‘स्पर्म फॉर्मेशन’) में कोई अज्ञात समस्या हो तो शुक्राणु सामान्य शुक्राणु की तुलना में भिन्न या असामान्य आकार का बनता है। शुक्राणु की आकृति या संरचना में असामान्यता (अब्नोर्मलिटी) होना यानि ‘स्पर्म मॉर्फोलॉजी’ ख़राब होती है। ऐसे शुक्राणु, पुरुष इनफर्टिलिटी का एक कारन है।
शुक्राणु के सिर-गर्दन-पूंछ ऐसे ३ अंग होते है। मॉर्फोलॉजी की जाँच करते समय सिर-गर्दन-पूंछ की संख्या, आकर या इनकी अनुपस्थिति देखि जाती है।
- स्पर्म हेड अब्नोर्मलिटी : शुक्राणु का सर अंडाकार होता है। इसमें न्यूक्लियस और डीएनए (जेनेटिक मटेरियल) होते है। सर के सामने एक सुई जैसी ‘ऍक्रोसोमल कॅप’ होती है। जिसकी मदत से शुक्राणु स्त्रीबीज में प्रवेश कर सकता है। शुक्राणु की सिर से जुडी कुछ असमान्यताए : बड़ा सिर (मैक्रोसेफली), छोटा सिर (माइक्रोसेफली), पिनहेड, पतला सिर (टॅपर्ड हेड), गोल शुक्राणु (ग्लोबोजोस्पर्मिया), बिना सिर वाला शुक्राणु, दो सिर वाला शुक्राणु (डुप्लिकेट शुक्राणु)।
- स्पर्म नेक ऍबनॉर्मलिटी : गर्दन में मेट्रोकोर्डिया होता है। ये बैटरी की तरह काम करते हैं। शुक्राणु को एनर्जी प्रोड्यूस करता है। शुक्राणु की नेक से जुडी कुछ असमान्यताए : झुकी हुई गर्दन, पतली गर्दन, सिर में फंसी गर्दन, गर्दन का नहीं होना शामिल हैं। इससे शुक्राणु अपना काम नहीं कर पाते और गर्भधारण में परेशानी होती है।
- स्पर्म टेल ऍबनॉर्मलिटी : शुक्राणु की पूंछ को फ्लैगेलम कहा जाता है। दो पूंछ (ड्यूप्लिकेट टेल), घुमावदार पूंछ (कर्व्ह टेल), मल्टिपल टेल, कुंडल पूंछ (कॉईल टेल), स्टंप टेल ऐसी टेल अब्नोर्मिलिटीज के कारन गर्भाधारण में परेशानी होती है।
स्पर्म काउंट और फर्टिलिटी
प्रति मिलीलीटर सीमेन सैंपल में मौजूद शुक्राणुओं की संख्या यानि स्पर्म काउंट। स्पर्म काउंट ज्यादा होना यानि गर्भधारण की सम्भावना अधिक है। लेकिन सिर्फ अधिक संख्या होना ही काफी नहीं है, की मोटिलिटी और मॉर्फोलॉजी भी अच्छी होना जरुरी है। क्योंकि कुछ केसेस में स्पर्म काउंट कम होता है लेकिन मोटिलिटी और मॉर्फोलॉजी अच्छी होने के कारन कपल गर्भधारण कर जाते है। तो कुछ केसेस में ‘लो स्पर्म काउंट’ होने के कारन गर्भधारण नहीं होता है। ऐसे में IUI से अच्छे रिज़ल्ट मिलते है।
स्पर्म क्वालिटी को प्रभावित करने वाले कारक
- जीवनशैली से जुड़े कारक : अपर्याप्त और असंतुलित आहार सेवन करने से शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है की, टोबैको, अल्कोहोल, ड्रग के सेवन से शुक्राणु की गुणवत्ता खराब हो जाती है। ‘स्पर्म प्रोडक्शन’ भी कम होने लगता है।
- मोटापा/ओबेसिटी : मोटापे से शुक्राणु असामान्यताएं बढ़ती हैं।
- नींद की कमी : अच्छी गुणवत्ता, पूर्ण और आरामदायक नींद पर्याप्त शुक्राणु उत्पादन के लिए फायदेमंद है। नींद संबंधी समस्याएं या नींद न आने की बीमारी होने पर सीमेन की मात्रा, सीमेन कॉन्सन्ट्रेशन, स्पर्म काउंट कम होते है।
- उम्र : उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों की फर्टिलिटी कम होने लगती है। शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा भी कम होने लगती है।
- पर्यावरणीय कारक : उच्च तापमान की जगह काम करना, इलेक्ट्रिक उपकरणों का लगातार उपयोग करना, या जेब में मोबाइल रखने से शुक्राणु का स्वास्थ्य ख़राब होता है।
- विषाक्त पदार्थों से संपर्क : हानिकारक रसायनों के संपर्क में काम करने से भी शुक्राणु स्वास्थ्य को खतरा होता है।
- इन्फेक्शन्स : गनोरिया, एच.आय.व्ही., एपिडिडायमिस, एपिडिडाइमिटिस, ऑर्किटिस जैसे इन्फेक्शन्स और व्हायरसेस के कारन स्पर्म प्रोडक्शन प्रभावित होता है। शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है, शुक्राणुओं की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- रिप्रॉडक्टिव्ह अंगों की समस्याए : पिछली सर्जरी, वास डेफेरेंस में ऑब्स्ट्रक्शन (शुक्राणुवाहिनी में रुकावट), जन्मजात अंडकोष का नहीं होना, वैरिकोसेले जैसी समस्याएं पुरुषों की फर्टिलिटी प्रभावित करते है। ‘लो स्पर्म काउंट’ या ‘एज़ूस्पर्मिया’ का सामना करना पड़ता है।
- शुक्राणु पर हमला करनेवाली एंटीबॉडीज : अँटीस्पॅर्म-अँटीबॉडी सिस्टिम में खराबी होनेसे यह अपना काम उलटे तरीके से करते है, और शुक्राणुओं पर हमला करते है। यह शुक्राणु की गुणवत्ता और संख्या में योगदान देते है।
- हार्मोनल समस्याएं या पिट्यूटरी ग्रंथि की समस्याएं : पिट्यूटरी ग्रंथि विभिन्न रीप्रोडक्टीव्ह हार्मोन का उत्पादन करती है। पिट्यूटरी ट्यूमर के कारन हार्मोनल समस्याए पैदा होती है। इससे स्पर्म प्रोडक्शन और यौन क्रिया प्रभावित होती है।
विभिन्न शुक्राणु समस्याओं के लिए फर्टिलिटी ट्रीटमेंट :
IUI :
लो स्पर्म काउंट या लो मोटिलिटी की समस्या होनेपर इंट्रायूटरिन इन्सेमिनेशन (IUI) एक प्राथमिक और प्रभावी उपचार है। इस प्रक्रिया में एक कैथेटर की मदत से शुक्राणु को फैलोपियन ट्यूब में स्थित स्त्रीबीज के नजदीक पहुंचाया जाता है। इस तरह शुक्राणु की यात्रा कम कर देने से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
IVF :
अच्छे शुक्राणु सिलेक्ट करके लैब में पेट्री डिश में स्त्रीबीजों के साथ मिलाए जाते है और फर्टिलाइज़ेशन के लिए छोड़ दिए जाते है। इस प्रकार बने हुए गर्भ को माता के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। IVF उपचार से गर्भधारण की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
ICSI / IMSI / PICSI :
शुक्राणु की मॉर्फोलॉजी और मोटिलिटी खराब होने पर गर्भधारण की संभावना बढ़ाने के लिए ICSI / IMSI / PICSI जैसे आधुनिक उपचारों का उपयोग किया जाता है। इस उपचार में, माइक्रोस्कोप की मदत से मॉर्फोलॉजिकली और बायोलॉजिकली स्वस्थ शुक्राणुओं का चयन किया जाता है।इतना ही नहीं, भ्रूण बनाने के लिए माइक्रोपिपेट की मदद से शुक्राणु को स्त्रीबीजों में इंजेक्ट किया जाता है। इस तरह शुक्राणु की असामान्यता पर काबू पाना और गर्भधारण करना संभव है।
जेनेटिक टेस्टिंग :
शुक्राणु की ख़राब क्वालिटी के साथ अनुवांशिक दोष होने की संभावना बढ़ती है। ऐसे में एम्ब्रियो ट्रांसफर से पहले एम्ब्रियो के सेल सैम्पल लेकर जेनेटिक मटेरियल की जाँच की जाती है। इस तरह ट्रांसफर के लिए जेनेटिकली अच्छे क्वालिटी का भ्रूण चुना जाता है। इससे स्वस्थ बच्चे के साथ साथ गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
अधिक सर्च किए जानेवाले प्रश्न :
शुक्राणु की क्वालिटी कैसे बढ़ाए?
– फल, सब्जियां, नट्स और साबुत अनाज जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर संतुलित आहार का सेवन करे।
– नियमित व्यायाम से शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में भी सुधार हो सकता है
– व्यसनों से बचें और चाय-कॉफी का सेवन कम करें।
– ध्यान या योग जैसी विश्राम तकनीकों का उपयोग करके तनाव के स्तर को कम करें।
– पर्याप्त नींद ले।
– कीटनाशकों या रसायनों और तापमान के संपर्क से बचें।
शुक्राणु असामान्यता के साथ गर्भधारण के लिए फर्टिलिटी ट्रीटमेंट कौनसे है?
फर्टिलिटी क्लिनिक में इनफर्टिलिटी के कारन अनुसार प्रभावी इलाज किया जाता है। जिसमे फर्टिलिटी दवा, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी, इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (IUI), इन विट्रो फर्टिलायझेशन (IVF), या ICSI, IMSI, PICSI, जेनेटिक टेस्टिंग (PGT) जैसे आधुनिक ART टेक्निक का उपयोग करके गर्भधारण की संभावना बढ़ाई जाती है।