हार्मोनल असंतुलन के कारन गर्भधारण में कठिनाई? ऐसे करे इलाज

सारांश : हार्मोनल असंतुलन यह एक ऐसी समस्या है की, इसके शारीरिक, मानसिक एवं फर्टिलिटी हेल्थ में बहोतसे बदलाव होते है। जो आपका डे टू डे लाइफ डिस्टर्ब करते है। जितनी समस्याए हार्मोनल इम्बैलेंस से होती है उतनाही आसान इसका इलाज होता है। हार्मोनल असंतुलन को कैसे पहचाने, डायग्नोसिस कैसे करे, मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ घरेलु इलाज कैसे करे ऐसी और जानकारी के लिए ब्लॉग जरूर पढ़े।

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हार्मोन्स क्या है और कैसे काम करते है?

हार्मोन यानि संप्रेरक। यह एक प्रकार का रसायन होता है। जिन्हें केमिकल मेसेंजर भी काहा जाता है। हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की ग्रंथियाँ (glands) होती हैं। इन ग्रंथियों में एक प्रणाली होती है जिसे ‘एंडोक्राइन सिस्टम’ या अंतस्रावी ग्रंथियाँ कहा जाता है।

ग्रंथियां हार्मोन (हार्मोन) का उत्पादन करती हैं और शरीर के कुछ भागों को विशिष्ट कार्य करने का सन्देश देती है। इस प्रक्रिया के लिए हार्मोन का ठराविक मात्रा में बनना जरुरी होता है। हार्मोन का कम या ज्यादा उत्पादन होनेपर इसे हार्मोनल असंतुलन कहा जाता है। जिससे कार्य बिगड़ता है।

कौनसे हार्मोन असंतुलित होने से गर्भधारण में कठिनाई होती है?

1) थायरॉइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन TSH :

थायराइड मेटाबॉलिज्म, पाचन, तापमान मेंटेन करने का काम करता है।  थायरॉइड शुक्राणु के विकास, वृद्धि और अंडाशय द्वारा अंडों के निकलने की सूक्ष्म प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार है।

हाइपोथायरायडिज्म : यानि थायरॉइड का कम उत्पादन होता है। इसे ‘कम सक्रीय थायरॉइड’ भी कहा जाता है। इससे अनियमित ओवुलेशन होता है। अनियमित मासिक धर्म के साथ गर्भधारण में कठिनाई होती है। पुरुषों में शुक्राणु की कमी या क्वालिटी ख़राब होती है।

हाइपरथायरायडिज्म : यानि थायरॉइड की मात्रा का बढ़ना। इससे मासिक धर्म प्रभावित होता है। साथ ही पुरुषों में शुक्राणु समस्या उत्पन्न होती है।

2) अँटी म्यूलेरियम हार्मोन (AMH) :

AMH हार्मोन अंडाशय में सबसे छोटे फॉलिकल्स बनाने के लिए जिम्मेदार होता है। एक महिला के जन्म के समय अंडाशय में लाखों स्त्रीबीज होते हैं। मासिक धर्म चक्र शुरू होने के बाद से ही स्त्रीबीजों की संख्या कम होने लगती है। AMH स्तर क्या दर्शाता है? यह इस बात की जानकारी देता है कि आपके अंडाशय में कितने स्त्रीबीज उपलब्ध है। यहां तक कि कम एएमएच स्तर के साथ भी, आईवीएफ किसी के अपने शुक्राणु के साथ किया जा सकता है।

3) प्रोलैक्टिन :

पिट्यूटरी ग्रंथि से प्रोलैक्टिन हार्मोन सेक्रेट होता है। जैसे-जैसे प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ता है, एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर कम होने लगता है और मासिक धर्म संबंधी शिकायतें, एनोव्यूलेशन समस्याएं निर्माण होती है।

प्रोलैक्टीनोमा : प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर ओव्यूलेशन को बाधित करता है। या अन्य प्रजनन हार्मोन के उत्पादन को रोकता है। महिलाओं को महिलाओं को अनियमित मासिक धर्म या मासिक धर्म की अनुपस्थिति का अनुभव हो सकता है।

कम प्रोलैकिन लेवल्स से महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता और और पुरुषों में यौन इच्छा में कमी और स्तंभन दोष देखा जा सकता है।

4) फॉलिक्युलर स्टिम्युलेटिंग हार्मोन FSH :

यह पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित होता है। एफएसएच हार्मोन ओव्यूलेशन का संकेत देता है। FSH ओवरियन फॉलिकल के विकास के लिए जिम्मेदार होता है।

उच्च FSH लेव्हल्स लो ओवरियन रिज़र्व (स्त्रीबीजों की संख्या कम होना), प्रीमैच्यूअर ओवरियन फेल्युअर, ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (OHSS), फॉलिकल्स का विकास न होने के संकेत देता है।

पुरुषों में, कम एफएसएच स्तर वृषण में समस्याओं का संकेत देता है। तो महिलाओं में अंडाशय से सम्बंधित या ओवुलेशन समस्याओं का संकेत देता है।

5) ल्यूटेनाइज़िंग हार्मोन LH :

LH रीप्रोडक्टीव्ह सिस्टिम की प्रक्रियाओं को ट्रिगर करता है, ओव्यूलेशन को बढ़ाता है और गर्भावस्था को समर्थन देता है। मासिक धर्म चक्र को बनाए रखता है। एलएच में वृद्धि के कारण आपका अंडाशय प्रत्येक मासिक धर्म चक्र के दूसरे सप्ताह के आसपास एक परिपक्व अंडा जारी करता है। उच्च LH का स्तर आपके ओवुलेट होने की जानकारी देता है।

LH का निम्न स्तर ओव्यूलेशन या ओवुलेटरी डिस्फंक्शन की समस्या का संकेत देता है। जिससे गर्भधारण में कठिनाई होती है।

एलएच का उच्च स्तर पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) जैसी स्थितियों का संकेत देता है। जहाँ कई सरे फॉलिकल्स अधेअधूरे बढ़ते है।

6) प्रोजेस्टेरोन :

प्रोजेस्टेरोन हार्मोन गर्भावस्था और भ्रूण के विकास मत्त्वपूर्ण होता है। एम्ब्रियो इम्प्लांटेशन में गर्भाशय की परत (एंडोमेट्रियम) को मोटा करता है। इसके आलावा मासिक धर्म को नियंत्रित रखना, यौन इच्छा बढ़ने में मदत करना, इस्ट्रोजेन की मात्रा को बदलकर हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी के रूप में भी काम करता है। पुरुषो में ‘टेस्टेस्टेरोन का उत्पादन करने में प्रोजेस्टेरोन मदत करता है, जो की एक सेक्स हार्मोन है।

लो प्रोजेस्टेरोन लेवल से यूटेरियन लायनिंग पतली बनती है। और गर्भ ठहरने में परेशानी होती है। मिसकैरेज या प्रीमैच्यूअर डिलीवरी का खतरा हो सकता है। अनियमित मासिक धर्म, गर्भधारण में कठिनाई के साथ स्ट्रेस या एंक्जाइटी हो सकती है।

पुरुषों में लो प्रोजेस्टेरोन लेवल होनेसे इरेक्शन समस्या, प्रोस्टेट इनलार्जमेंट, यौन इच्छा में कमी, प्रोस्टेट कैंसर हो सकता है।

महिलाओं में उच्च प्रोलैक्टिन मात्रा मोलर प्रेग्नेंसी का संकेत हो सकता है। जहा कोई गर्भ नहीं होता लेकिन प्रेग्नेंसी के लक्षण दिखाई देते है।

7) इंसुलिन :

इंसुलिन एक हार्मोन है जो ब्लड लेवल्स कंट्रोल करता है।

हाइपरइंसुलिनिमिया : उच्च इन्सुलिन मात्रा होनेपर ओवुलेशन समस्या, अनियमित मासिक धर्म, या ओवुलेशन बिलकुल नहीं होता है।

लो इन्सुलिन लेवल्स PCOS का संकेत देता है। पुरुषों में इन्सुलिन रेसिस्टेंस होनेसे शुक्राणु की संख्या में कमी, शुक्राणु की ख़राब क्वालिटी, टेस्टेस्टेरोन में कमी, यौन इच्छा में कमी, इरेक्शन समस्या हो सकती है।

8) एस्ट्रोजन :

असंतुलित एस्ट्रोजेन ओव्यूलेशन समस्या या यूटेरियन लायनिंग पतली बनाने में योगदान देता है। महिलाओं के प्रजनन और यौन स्वास्थ्य को बनाए रखता है। स्तनों का विकास, मासिक धर्म की शुरुवात होना, कोलेस्टेरोल का नियंत्रण करने का काम इस्ट्रोजन करता है।

एस्ट्रोजेन का स्तर कम  होनेपर महिला ओवुलेट नहीं करती और गर्भधारण में कठिनाई होती है। पुरुषों में मोटापा या सेक्स ड्राइव के कमी होती है।

एस्ट्रोजेन का उच्च स्तर पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) या एंडोमेट्रियोसिस जैसी बिमारियों को दर्शाता है। जो गर्भधारण में कठिनाई लाता है।

9) एंड्रोजेन :

जब एंड्रोजन का असंतुलन या कमी होती है, तो इससे गर्भधारण करने में कठिनाई हो सकती है।

असंतुलित एंड्रोजेन महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) या अरली मेनोपॉज को दर्शाता है।

पुरुषों में एंड्रोजेन की कमी टेस्टीज, पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस की समस्याए दर्शाता है।

10) टेस्टेस्टेरोन :

यह एक मेल हार्मोन है। टेस्टेस्टेरोन की मात्रा कम होनेसे शुक्राणु उत्पादन में कमी (low sperm production) होती है और गर्भधारण में कठिनाई होती है। प्रजनन क्षमता कम होती है। सेक्स ड्राईव्ह कम होकर लो लिबिडो का अनुभव होता है। या कुछ केसेस में इरेक्शन समस्या जैसे सेक्स्युअल डिस्फंक्शन होते है। जिससे नैसर्गिक तरीके से गर्भधारण में कठिनाई होती है।

11) कोर्टिसोल :

कोर्टिसोल बॉडी में तनाव का नियंत्रण करता है। इसलिए इसे स्ट्रेस हार्मोन भी कहा जाता है। ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने का काम कोर्टिसोल करता है।

क्रोनिक तनाव या अन्य कारकों के कारण कोर्टिसोल का स्तर असंतुलित हो जाता है, तो इसका फर्टिलिटी हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

उच्च कोर्टिसोल लेवल्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे प्रमुख प्रजनन हार्मोन को बाधित कर सकता है।  जिससे ओवुलेशन समस्या और इम्प्लांटेशन समस्या होती है।

कुशिंग सिंड्रोम : कोर्टिसोल की मात्रा अतिरिक्त बढ़नेपर इसे कुशिंग सिंड्रोम के विकार से जाना जाता है। कोर्टिसोल का उच्च स्तर एक महिला के अंडाशय के कार्य को बाधित करता है। मासिक धर्म पूरी तरह से बंद हो सकता है या अनियमित हो सकता है। अनुपचारित कुशिंग सिंड्रोम वाली महिलाओं को आमतौर पर गर्भवती होने में कठिनाई होती है।

हार्मोनल असंतुलन का निदान एवं इलाज

हार्मोन्स का प्रकारनिदानउच्च स्तरीय हार्मोन का इलाजनिम्न स्तरीय हार्मोन का इलाज
TSHब्लड टेस्टअतिसक्रिय थायरॉयड (हायपरथायरॉइडिज्म) ट्रीटमेंट : लेवोथायरोक्सिन – हार्मोन रिप्लेसमेंट दवाईसक्रिय थायरॉयड (हाइपोथायरायडिज्म) ट्रीटमेंट : – रेडिओएक्टिव आयोडीन – मेडिसिन – सर्जरी
AMHब्लड टेस्टनॉर्मल या उच्च AMH लेवल गर्भधारण की सम्भावना बढ़ाता है।डाइट प्लान एक्सरसाइज जीवनशैली में सुधार गर्भधारण के लिए IUI, IVF कोई भी दवाई AMH बढ़ा नहीं सकती।
प्रोलैक्टिनब्लड टेस्टप्रोलैक्टीनोमा ट्रीटमेंट : ब्रोमोक्रिप्टिन या कैबर्जोलिन की दवाप्रोलैक्टिन रिप्लेसमेंट थेरपी
FSHब्लड टेस्टमेडिसिन : इस्ट्रोजन, बर्थ कंट्रोल पिल, ल्युप्रोनफोलिट्रोपिन अल्फ़ा मेडिसिन हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी
LHब्लड टेस्ट यूरिन टेस्टडाइट प्लान एक्सरसाइज जीवनशैली में सुधार क्लोमीफीन साइट्रेट या लेट्रोज़ोल की दवा गर्भधारण के लिए ओवुलेशन इंडक्शन, IUI, IVFइस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरपी पुरुषों में मेनोट्रोपीन इंजेक्शन
प्रोजेस्टेरोनब्लड टेस्टडाइट प्लान एक्सरसाइज जीवनशैली में सुधार बर्थ कंट्रोल पिल हर्बल थेरपीहार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी : दवा, क्रीम या इंजेक्शन सिंथेटिक प्रोजेस्टेरोन विटामिन बी 6, मैग्नीशियम, से भरपूर डाइट
इंसुलिन ब्लड टेस्टमेटफॉर्मिन मेडिसिन जीवनशैली में सुधार डाइट प्लान वजन कम करना स्ट्रेस रिड्यूसिंग टेक्निक्स एक्सरसाइजइंसुलिन थेरेपी डाइट प्लान जिसमे कार्बोहाइड्रेट्स हो ग्लूकोज टेबलेट या जेल नैचरल ग्लूकोज का सेवन
एस्ट्रोजनब्लड टेस्टसिलेक्टिव्ह इस्ट्रोजेन रिसेप्टर मॉड्यूलर (SIRM) एरोमाटेज़ इन्हिबिटर्सहार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी (HRT) हार्मोनल बर्थ कंट्रोल पिल डाइट प्लान जीवनशैली में सुधार
एंड्रोजेनब्लड टेस्टगर्भनिरोधक गोली एंटीएन्ड्रोजन्स गोनैडोट्रोपिन रिलीजिंग हार्मोन अंटागोनिक्स आदि मेडिसिनटेस्टेस्टेरोन रिप्लेसमेंट थेरपी डाइट प्लान एक्सरसाइज स्ट्रेस रिडक्शन टेक्निक्स
कोर्टिसोलब्लड टेस्टमेडिसिन एक्सरसाइज मिंडफुलनेस थेरपी पूरी नींद लेनाहाइड्रोकार्टिसोन मेडिसिन : कोर्टिसोल रिप्लेसमेंट थेरपी

अधिक सर्च किए जानेवाले प्रश्न

१) हार्मोनल असंतुलन में गर्भधारण संभव है ?

हाँ बिलकुल। सिंपल मेडिसिन या हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी से गर्भधारण संभव है। कुछ कॉम्प्लिकेशन की स्थिति में एडवांस ART टेक्निक, IUI, IVF की मदत से गर्भधारण संभव है।

२) हार्मोनल इम्बैलेंस के लक्षण क्या है?

– अनियमित मासिक चक्र
– थकान
– एकाग्रता में कमी
– वजन बढ़ना या कम होना
– चेहरे, गर्दन, छाती और पीठ पर बालों का बढ़ना।
– यौन इच्छा में कमी
– पुरुषों में शरीर के बालों का झड़ना
– पुरुषों में इरेक्शन की समस्या
– तनाव, उच्च रक्तचाप, अवसाद या चिंता
– नींद की समस्या
– धड़कन
– मूड बदलना
– चिकनी और खुश त्वचा
– बाल झड़ना

३) हर्मोनल इम्बैलेंस के कारन क्या है?

रजोनिवृत्ति, यौवनावस्था या गर्भावस्था में हार्मोनल इम्बैलेंस होना स्वाभाविक होता है।
अन्य कारन :
– अस्वास्थ्यकर जीवनशैली
– पिट्यूटरी ग्रंथि के विकार
– अंतःस्रावी ग्रंथि को क्षति या चोट
– अंतःस्रावी ट्यूमर या एडेनोमास
– अन्य दवाओं के दुष्प्रभाव
– हाइपरथायरायडिज्म
– रेडिओथेरपी या पिछली सर्जरी से क्षति
– मस्तिष्क में चोट

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