‘माँ’ बनना जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलों में से एक होता है। हर कोई ऐसी ख़ुशी की ख्वाहिश रखता है। जितनी ख़ुशी देनेवाली ये ‘प्रेग्नेंसी’ होती है; उतनीही जटिल ‘प्रेग्नेंसी प्रक्रिया’ होती है। सेक्स्युअल इंटरकोर्स के बाद प्रेग्नेंसी तक महिला के शरीर में सूक्ष्म घटनाए होने लगती है। तो आइए जानते है की, प्रेग्नेंसी कैसे होती है? कंसीव कैसे होते है? प्रेग्नेंसी के लिए खुद को कैसे तैयार करे ? और प्रेग्नेंसी ना होनेपर क्या करे?
प्रेग्नेंट होने के लिए महत्त्वपूर्व बाते
- रिप्रोडक्टिव ऑर्गन (Reproductive Organs) की सेहत का ध्यान रखे।
- पेट में दर्द, जलन, सूजन जैसे लक्षणों को नजरंदाज ना करे। डॉक्टर से इलाज करवाए। क्योकि यह इन्फेक्शन्स या किसी और फर्टिलिटी पर असर करनेवाले बीमारी के लक्षण हो सकते है।
- मासिक धर्म का नियमित होना प्रेग्नेंसी में महत्त्वपूर्ण होता है।
- मासिक धर्म में कम ब्लीडिंग होना या ज्यादा ब्लीडिंग होनेपर डॉक्टर से इलाज करवाए।
- सेक्स्युअल इंटरकोर्स में परेशानी, वेदना, इज्याक्यूलेशन (स्खलन) जैसी समस्याओं के लिए डॉक्टर से जाँच करवाए।
- कैलरीज, कार्बोहाइड्रेट्स, विटामिन्स, फॉलिक एसिड से सम्पूर्ण आहार का सेवन करे।
- ‘ओवुलेशन डे’ को जानिए और सही समय इंटरकोर्स करे। ”डे १४” और नजदीक के दिन ओवुलेशन पीरिएड होता है।
- पूरी नींद लेना, भरपूर पानी का सेवन करना, एक्सरसाइज/योगा और मेडिटेशन करना आपकी फर्टिलिटी सेहत अच्छी रखने में मदत करेगा।
- मेन्टल हेल्थ भी कंसीव करने के लिए और बच्चे की सेहत के लिए अच्छी होना जरुरी होती है। इसलिए स्ट्रेस, चिंता, डिप्रेशन जैसी चीजों से बचे।
- कंसीव करने में परेशानी होनेपर फर्टिलिटी डॉक्टर से सलाह लेना फायदेमंद साबित होता है।
- गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन ना करे
प्रेग्नेंसी में परेशानी है? तो आजही फर्टिलिटी डॉक्टर से संपर्क करे.
Free consultationप्रेग्नेंसी कैसे होती है ?
गर्भनलिका (फैलोपियन ट्युब) में उपस्थित महिला का बीज और शुक्राणु का फर्टिलाइज़ेशन होकर गर्भधारणा होती है।
गर्भधारण प्रक्रिया में ओवुलेशन, फर्टिलायझेशन और इम्प्लांटेशन ये स्टेजेस होती है।
- स्पर्म ट्रांसफर : जब महिला और पुरुष का सेक्स्युअल इंटरकोर्स होता है तब पुरुष के शुक्राणु (sperms) महिला के योनि मार्ग से जाकर गर्भाशय (uterus) में प्रवेश करते है। स्पर्म को महिला के एग्ज तक पहुंचना जरुरी होता है। इज्याक्यूलेशन के बाद लगभग १ मिनट में शुक्राणु फैलोपियन ट्यूब तक पहुँचते है।
- ओवुलेशन : मासिक धर्म के १४ वे दिन अंडकोष (ovaries) मच्यूअर एग्ज छोड़ने लगते है। फैलोपियन ट्यूब्ज़ के आगे की कोशिकाए (fimbria) ये एग्ज निगलकर फैलोपियन ट्यूब्ज़ में लाती है। ओवुलेशन के बाद यह प्रक्रिया होती है। प्रेग्नेंसी के लिए ओवुलेशन जरुरी होता है।
- हार्मोनल चेंजेस : ओवुलेशन के बाद हार्मोनल चेंजेस दिखाई देते है। LH (ल्यूटेनाइज़िंग हार्मोन) और एस्ट्रोजेन हार्मोन की मात्रा कम होती है। प्रोगेन्स्टेरॉन की मात्रा बढ़ जाती है। प्रोजेस्टेरोन प्रेग्नेंसी के लिए उपयुक्त गर्भाशय की परत बनाने में मदत करता है।
- एग्ज ट्रांसफर : प्रेग्नेंसी के लिए ओवुलेशन होना जरुरी होता है। ओव्हरीज ने एग्ज छोड़ना चाहिए और फैलोपियन ट्यूब्ज़ ने ये एग्ज उठाकर ट्यूब में लाना जरुरी होता है।
- फर्टिलाइज़ेशन : फर्टिलाइज़ेशन मतलब शुक्राणु और एग्ज का मिलकर एक होना। फर्टिलाइज़ेशन प्रोसेस महिला के फैलोपियन ट्यूब में होती है। ट्यूब में ठहरे हुए एग तक शुक्राणु को पहुंचना होता है। इस समय स्पर्म अपने हेड के जरिये एग के अंदर प्रवेश करता है। ओवुलेशन के बाद २४ घंटे में फर्टिलाइज़ेशन होता है।
- एम्ब्रियो फॉर्मेशन : फर्टिलाइज़ेशन के बाद बने हुए भ्रूण को zygote कहते है। यह zygote ३-५ दिन तक फैलोपियन ट्यूब्ज़ में बढ़ता है। बढ़ते समय कई कोशिकाओं में २-४-६-८ की संख्या में विभाजित होता है। इस स्टेज को ‘एम्ब्रियो फॉर्मेशन’ और भ्रूण को ‘एम्ब्रियो’ कहा जाता है।
- इम्प्लांटेशन : ‘एम्ब्रियो’ फैलोपियन ट्यूब से उतरकर गर्भाशय में जाता है। गर्भाशय में बनी परत से जुड़ता है। इस प्रक्रिया को इम्प्लांटेशन कहा जाता है। इम्प्लांटेशन के बाद ९ महीने तक गर्भ यही बड़ा होता है।
कंसेप्शन क्या है और कंसेप्शन के प्रकार :
conception यानि गर्भाधान। स्पर्म और स्त्रीबीज का सफलता के साथ जुड़ना या फर्टिलाइज होना मतलब आप कंसीव करते हो।
नैचरल कंसेप्शन :
नैसर्गिक तरीके से कंसेप्शन प्रोसेस सफल तरीके से होती है। ओवुलेशन के बाद स्पर्म और एग का फैलोपियन ट्यूब में फर्टिलाइज होना और एम्ब्रियो का गर्भाशय की परत में ठहरना यह “नैचरल कंसेप्शन” होता है।
IUI के साथ कंसेप्शन
जब कोई कपल नैचरल तरीके से कंसीव नहीं कर पाता है, तब फर्टिलिटी सेंटर में इंट्रा यूटेरियन इनसेमिनेशन (IUI) किया जाता है। जब स्पर्म्स को फैलोपियन ट्यूब में उपस्थित स्त्रीबीज तक का सफर करना कठिन हो जाता है, तब IUI की मदत से स्पर्म्स को फैलोपियन ट्यूब के नजदीक पहुंचाया जाता है। स्पर्म्स का सफर आधा किया जाता है। इस प्रोसेस में स्पर्म वॉशिंग करके स्पर्म्स को कुछ पोषक तत्व दिए जाते है। जिससे सफल फर्टिलाइज़ेशन होता है। इस तरीके से IUI प्रक्रिया में कंसेप्शन होता है।
IVF के साथ कंसेप्शन
जब कपल नैचरली या IUI से भी कंसीव नहीं होते है तो IVF (इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन) का सुझाव डॉक्टर देते है। इस प्रक्रिया में स्पर्म और एग्ज की फर्टिलाइज़ेशन प्रक्रिया लैब में इन्क्यूबेटर में की जाती है। इस तरह कृत्रिम तरीके से प्रयोगशाला में कंसेप्शन होता है। यह एक सुरक्षित और अधिक सक्सेस देनेवाली प्रक्रिया है।
ICSI के साथ कंसेप्शन
ICSI यह एक एडवांस्ड IVF तकनीक है। जब प्रयोगशाला में एग्ज और स्पर्म का निषेचन नहीं हो पाता है, तब ”इन्ट्रासायटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन” के जरिये महिला के बीज में स्पर्म को इंजेक्ट किया जाता है। इस तरह कंसेप्शन की प्रक्रिया लैब में होती है। स्पर्म अब्नोर्मलिटी केसेस में यह तकनीक सक्सेसफुल होती है।
प्रेग्नेंट होने के लिए क्या करें ? | How to get pregnant in Hindi
- नैचरली कंसीव के लिए प्रयास : आप २० से ३५ तक की उम्र में नैचरली कंसीव करने का प्रयास कर सकते है। ओवुलेशन विंडो को जानना और सही समय इंटरकोर्स करना, साथ ही हेल्थी लाइफस्टाइल अपनाने से आपको नैचरल कंसेप्शन में सफलता मिलती है।
- असफल होनेपर डॉक्टर की सलाह लेना : १ साल तक प्रयास करने के बावजूद कंसीव करने में कठिनाई है तो आपको फर्टिलाइज़ेशन समस्या हो सकती है। ऐसे में फर्टिलिटी डॉक्टर से कंसल्टेशन फायदेमंद हो सकता है।
- फर्टिलिटी सेंटर में ट्रीटमेंट : फर्टिलिटी सेंटर में आपका चेक अप, केस हिस्टरी, टेस्ट्स के जरिये आपकी समस्या का निदान और सटीक उपचार किया जाता है। फर्टिलिटी सेंटर में बेसिक से एडवांस्ड ट्रीटमेंट उपलब्ध होते है।
प्रेग्नेंसी समस्या पर एक्सपर्ट डॉक्टर्स की मोफत सलाह के लिए तुरंत संपर्क करे
Free consultationआप प्रेग्नेंट हो ये कैसे समझे?
प्रेग्नेंसी लक्षण | कुछ लक्षणों से आपको प्रेग्नेंसी का पता लगता है। – पीरिएड मिस्ड होना – नोशिया या वोमिटिंग – थकान महसूस करना – पेशाब में जल्दी होना – सुबह सुबह बीमारी महसूस करना – मूड स्विंग्स |
प्रेग्नेंसी टेस्ट | कंसीव होने के बाद शरीर ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोफीन (HCG) तैयार होता है। पीरिएड मिस्ड होने के १ हफ्ते के बाद ”HCG टेस्ट किट” के माध्यम से घर पर यूरिन टेस्ट करके आपको प्रेग्नेंसी का पता चलता है। – IVF ट्रीटमेंट में एम्ब्रियो ट्रांसफर के २ सप्ताह बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाता है। – IUI ट्रीटमेंट के १४ दिन बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाता है। |
प्रेग्नेंसी फैक्ट्स
- पुरुष के शरीर में हर रोज मिलियन स्पर्म्स बन सकते है।
- महिला जब जन्म लेती है तब उसके शरीर में लाखो की संख्या में स्त्रीबीज होते है। जो वापिस कभी नहीं बनते। हर मासिक धर्म में एक-एक बीज घटता जाता है।
- इसीलिए बढ़ती उम्र के साथ बीजों की संख्या और क्वालिटी कम होती जाती है और बच्चे होने में परेशानी होती है।
- महिला के गर्भाशय में २४-४८ घंटे शुक्राणु जिन्दा रह सकते है। ज्यादा गतिशील शुक्राणु स्त्री के प्रजनन मार्ग में ४-५ दिन तक जिन्दा रह सकते है।
- स्त्रीबीज को एक ही स्पर्म फर्टिलाइज कर सकता है।
- एक cell में २३ गुणसूत्र की जोडिया होती है। महिला के २३ वि जोड़ी में “X X ” क्रोमोसोम होते है और पुरुष के २३ वि जोड़ी में “XY” क्रोमोसोम होते है। महिला का X और पुरुष का X मिलकर या फिर वैसे ही महिला का X और पुरुष का Y मिलकर गर्भ बनता है।
अधिक सर्च किए जानेवाले प्रश्न :
कंसेप्शन के बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट पोजिटिव्ह कब आती है ?
जवाब : पीरिएड मिस्ड होने के १ हफ्ते बाद आप प्रेग्नेंसी टेस्ट कर सकते है।
कंसेप्शन और फर्टिलाइज़ेशन में क्या फर्क रहता है?
गर्भाधान (Conceive) और निषेचन (Fertilization) का मतलब एक ही है। दोनों शब्द शुक्राणु और स्त्रीबीज के जुड़ने का वर्णन करते हैं।
कंसेप्शन का सही समय कोनसा होता है?
मासिक धर्म के बाद १२ से १४ दिन बाद का समय ओवुलेशन का होता है। ओवुलेशन टाइम आप कंसीव कर सकते है। ओवुलेशन प्रेडिक्टर किट का उपयोग करके आप घरपर ‘ओवुलेशन डे’ जान सकते है।