पुरुष के वीर्य में शुक्राणु की अनुपस्थिति "एज़ूस्पर्मिया" दर्शाती है। ज़ीरो स्पर्म काउंट या निल शुक्राणु की स्थिति को "एज़ूस्पर्मिया" के नाम से जाना जाता है। एज़ूस्पर्मिया का सीधा सम्बन्ध पुरुष वन्ध्यत्व से होता है। क्योकि कंसीव करने के लिए स्पर्म से ओवुम का फर्टिलाइज़ेशन होना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। और जब पुरुष एज्याक्यूलेट करता है और सीमेन में ज़ीरो स्पर्म्स होते है तब कपल कंसीव नहीं कर पाते है। प्री-टेस्टिकुलर, टेस्टिकुलर और पोस्ट-टेस्टिकुलर कारणों से एज़ूस्पर्मिया होता है। लेकिन घबराने की कोई बात नहीं आधुनिक उपचार पद्धति से एज़ूस्पर्मिया के केसेस में भी गर्भधारण हो सकता है।
निल शुक्राणु क्या है?
नील शुक्राणु एक ऐसे व्यक्ति की मेडिकल कंडीशन है जहां एक आदमी के वीर्य में शुक्राणु बिलकुल भी नहीं होते हैं। लगभग 20% पुरुष बांझपन स्थितियों में पाए जाते है। एजूस्पर्मिया का मतलब होता है ‘नो स्पर्म काउंट’ या ‘जीरो स्पर्म काउंट’।
निल शुक्राणु की स्थिति क्यों उत्पन्न होती है ? ये जानने के लिए स्पर्म प्रोडक्शन और स्पर्म ट्रांसफॉर्म कैसे होता है, ये जानना जरुरी है।
स्पर्म प्रोडक्शन और ट्रांसफॉर्मेशन सिस्टिम
मानव शरीर की रचना देखी जाए तो पुरुषो के स्क्रोटम में दो टेस्टीज होते है; जहाँ से स्पर्म प्रोडक्शन होता है। puberty age में स्पर्म प्रोडक्शन शुरू होता है। फिर नियमित रुप से करोडो की संख्या में स्पर्म्स प्रोड्यूस होते रहते है। ये स्पर्म प्रोडक्शन पुरुषोंको प्रजनन क्षमता प्रदान करता है। बहोतसे पुरुषो में ये स्पर्म प्रोडक्शन की प्रक्रिया आजीवन होती रहती है। स्पर्म प्रोड्यूस होने के बाद एक नर्व (नलिका) से सारे स्पर्म्स‘सेमिनल वेसिकल्स’ में ट्रांसफॉर्म किए जाते है। इस नर्व को ‘व्हास डिफरेंस’ कहा जाता है। जब भी इंटरकोर्स होता है उस वक्त ये स्पर्म्सपेनिज में रिलीज होते है और इजैक्युलेशन के दौरान बाहर निकलते है। ये हुई सामान्य प्रक्रिया। अब देखते है निल शुक्राणु की स्थिति उत्पन्न होने के क्या कारन हो सकते है।
निल शुक्राणु के प्रकार
स्पर्म का प्रोडक्शन और कार्य हमने देखा। इससे ये समज आता है की निल शुक्राणु के दो कारण हो सकते है या तो स्पर्म का प्रोडक्शन नहीं हो रहा है ; या फिर स्पर्म प्रोड्यूस तो हो रहे है लेकिन पेनीज तक पहुँचने में दिक्कत है। इस तरह से निल शुक्राणु के २ प्रकार होते है।
१) | ऑब्स्ट्रक्टिव्ह एज़ूस्पर्मिया | जब स्पर्म प्रोडक्शन अच्छेसे होता है, लेकिन स्पर्म को पेनीज तक का सफर पार करने में कोई दिक्कत आती है तो इसे Obstructive Azoospermia यानि की ऑब्स्ट्रक्टिव्ह निल शुक्राणु कहा जाता है। vas deference में ब्लॉकेज होने के कारण स्पर्म पेनीज तक नहीं पहुँच पाते। |
२) | नॉन-ऑब्स्ट्रक्टिव्ह एज़ूस्पर्मिया | non-obstructive Azoospermia के स्थिति में स्पर्म का प्रोडक्शन ही नहीं होता इसीलिए वीर्य में झिरो शुक्राणु पाए जाते है। ये ज्यादातर पायी जानेवाली समस्या है। लगभग वन्ध्यत्व से जुड़े ८५% पुरुषो में स्पर्म का प्रोडक्शन नहीं होता है ; या फिर बहुत कम होता है। इस वजह से सीमेन में स्पर्म नहीं होते है। |
नॉन-ऑब्स्ट्रक्टिव्ह एज़ूस्पर्मिया के २ प्रकार होते है
प्री-टेस्टिकुलर एजुस्पर्मिया : इसमें पुरुष का स्क्रोटम बिल्कुल सामान्य होता है परंतु शुक्राणु नही बनते है। यह एजुस्पर्मिया बिल्कुल अलग प्रकार का होता है।
टेस्टिकुलर एजुस्पर्मिया : इसमें पुरुष का स्क्रोटम सामान्य नही होता है। स्क्रोटम किसी संक्रमण/इन्फेक्शन्स या फिर वायरस से प्रभावित होता है।
- स्पर्म प्रोडक्शन की सामान्य स्थिति
- हेल्थी टेस्टीज के स्थिति में १ दिन में १ टेस्टीज में २ करोड़ से ज्यादा स्पर्म्स प्रोड्यूस होते है।
- एक सेकण्ड में १५०० स्पर्म्स प्रोड्यूस होते है।
- २४ घंटे में ७०-१५० दशलक्ष स्पर्म प्रोड्यूस होते है।
- एक इजैक्युलेशन (स्खलन) में २० to १५० दशलक्ष स्पर्म होते है।
- नार्मल स्पर्म रेंज : एक सीमेन सैंपल में १५-२०० दशलक्ष स्पर्म्स होते है।
अशुक्राणुता का क्या कारण है?
अशुक्राणुता के कारण सीधे एजूस्पर्मिया के प्रकार से संबंधित होते हैं। ऑब्स्ट्रक्टिव्ह एज़ूस्पर्मिया और नॉन-ऑब्स्ट्रक्टिव्ह एज़ूस्पर्मिया के कारण अलग अलग हो सकते है।
ऑब्स्ट्रक्टिव्ह एज़ूस्पर्मिया के कारण:
vas deferens और epididymus और ejaculatory ducts के में ऑब्स्ट्रक्शंस होने के कारण एज़ूस्पर्मिया होता है। जैसे की –
- इन क्षेत्रो में चोट होना
- संक्रमण / अनुवांशिकता
- सूजन और जलन होना
- पेल्विक में सर्जरी
- सिस्ट का बनना
- पुरुष नसबंदी (Vasectomy): यह एक गर्भनिरोधक प्रक्रिया है जिसमें शुक्राणु के प्रवाह को रोकने के लिए वास डेफेरेंस को काट दिया जाता है या जकड़ दिया जाता है।
- सिस्टिक फाइब्रोसिस जेनेटिक डिसॉर्डर : जिसके कारण या तो वास डिफरेंस नहीं बनता है या असामान्य विकास का कारन बनता है जैसे कि वास डेफेरेंस में मोटे स्राव के निर्माण से वीर्य अवरुद्ध हो जाता है।
- ज्यादा बुखार का आना
- इन्फ्लेमेशन : इंफेक्शन के कारण अंदर सूजन का होना
नॉन-ऑब्स्ट्रक्टिव एज़ूस्पर्मिया के कारण:
- अनुवांशिक कारण
- कल्मन सिंड्रोम : एक आनुवंशिक (विरासत में मिला) विकार है, जो X गुणसूत्र पर आधारित होता है। अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो तो पुरुष वन्ध्यत्व की समस्या हो सकती है।
- क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम : एक पुरुष में एक अतिरिक्त X क्रोमोसोम होता है। XY के बजाय उसका क्रोमोसोमल मेकअप XXY बनाता है। इससे वन्ध्यत्व हो सकता है।
- Y गुणसूत्र विलोपन/ डिलेशन : Y गुणसूत्र (पुरुष गुणसूत्र) अगर नहीं हो तो वन्ध्यत्व होता है। क्योकि ये स्पर्म प्रोडक्शन के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
- हार्मोनल इम्बैलेंस किंवा एंडोक्राइन डिसऑर्डर
- Hypogonadotropic hypogonadism (HGH)
- हायपरप्रोलैक्टोनेमिया
- एंड्रोजेन रेजिस्टेंस
- एज्यक्युलेशन प्रोब्लेम्स
- इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (ED)
- रेस्ट्रोगेड इजाक्युलेशन : जिसमे स्पर्म पेनिज में ट्रांसफॉर्म होने की वजाय पीछे यूरिनरी ब्लैडर में चले जाते है। और यूरिन में स्पर्म पाए जाते है।
- टेस्टिक्युलर से सम्बन्धित कारण
- एनोर्चिया : अंडकोष का नहीं होना
- Cyptorchidism : स्क्रोटम में टेस्टिकल्स का नहीं होना
- सर्टोली सेल-ओनली सिंड्रोम : टेस्टिक्युलर जीवित स्पर्म सेल्स बनाने में कामयाब नहीं रहते।
- Testicular torsion
- Tumors
- मेडिकेशन्स जिससे शुक्राणु को नुकसान पहुँचता है।
- डायबिटीज
- सिरोसिस
- वैरिकोसेल : अंडकोष से आने वाली नसें फैल जाती हैं, जिससे शुक्राणु का उत्पादन नहीं हो पाता।
- माइक्रो डीलेशन ऑफ़ व्हाइट क्रोमोज़ोन : मेल क्रोमोज़ोन में माइक्रो डिलेशन होना
- हार्मोनल इम्बैलेंस : FSH (फॉलिकुलर स्टिमुलेटिंग हार्मोन), LH (ल्यूटेनाइज़िंग हार्मोन), टेस्टेस्टेरोन स्पर्म प्रोडक्शन का काम करते है। इनमे कोई भी समस्या होने की वजह से निल स्पर्म काउंट की समस्या देखि जाती है।
निल शुक्राणु के लक्षण
- Infertility: पत्नी का गर्भधारण में असमर्थ होना
- पेशाब करते समय दर्द महसूस होना
- Ejaculation: वीर्य स्खलन में समस्या होना
निल शुक्राणु का निदान कैसे किया जा सकता है?
ब्लड टेस्ट्स : | – टेस्टेस्टेरोन – FSH : फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन – LH : ल्यूटेनाइज़िंग हार्मोन – जेनेटिक टेस्टिंग – एक्स रे या अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी : प्रजनन ऑर्गन के आकर, साइज, ट्यूमर्स, ब्लोकेजेस, अपर्याप्त ब्लड सप्लाय जानने के लिए ये टेस्ट किये जाते है। – ब्रेन इमेजिंग : हाइपोथैलेमस या पिट्यूटरी ग्रंथि के विकारों की पहचान करने के लिए ब्रेन इमेजिंग टेस्ट किया जाता है। – टेस्टीज की बायोप्सी / टिश्यू सैंपलिंग |
फिज़िकल एक्ज़ामिनेशन : | – पेनीज, स्क्रोटम और व्हास डिफरेंस की उपस्थिति देखना – एपिडीडिमिस की कोमलता और सूजन की जाँच करना – टेस्टीज का आकार – वैरीकोसेल की उपस्थिति देखना – इजाक्यूलर डक्ट (स्खलन वाहिनी) में ब्लॉकेज की उपस्थिति देखना |
सीमेन फ्रक्टोज टेस्ट |
निल शुक्राणु का उपचार?
ऑब्सट्रक्टिव एजूस्पर्मिया के उपचार :
- सर्जरी : प्रजनन मार्ग की ब्लॉकेज ट्यूब्स को सुरक्षित रूप से ठीक किया जाता है ; जिससे शुक्राणु का इजैक्यूलेशन के स्थिति तक का मार्ग खुला होता है। माइक्रोसर्जरी या एंडोस्कोपिक (Endoscopic) सर्जरी की जाती है।
- हॉर्मोन ट्रीटमेंट : कुछ मामलों में हॉर्मोन ट्रीटमेंट या सर्जरी की मदद से निल शुक्राणु का इलाज किया जाता है।
- Varicocelectomy : यदि किसी पुरुष को वैरीकोसेल की समस्या है तो उन्हें वारिकसेलेक्टोमी की सलाह दी जा सकती है। यह एक सर्जरी है जो पुरुषों के प्रजनन अंग में बढ़ी हुई नसों को हटाने के लिए की जाती है।
- ICSI (इंट्रा साइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन) : ये एक एडवांस्ड IVF प्रक्रिया है, जिसमें एक स्वस्थ शुक्राणु को महिला के अंडे में इंजेक्ट किया जाता है।
- Sperm Extraction Techniques : TESA / PESA / MESA /TESE/ Micro TESE
TESA/PESA : | एक छोटी प्रक्रिया के ज़रिये शुक्राणु को टेस्टीज में से पतली सुई की सहायता से बाहर निकाल लेते हैं (sperm retrival technique)। ये सर्जिकल स्पर्म एस्पिरेशन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टेक्निक्स है। TESA (टेस्टिकुलर स्पर्म एस्पिरेशन), PESA (पर्क्यूटेनियस एपिडीडिमल स्पर्म एस्पिरेशन), इनके माध्यम से टेस्टीज या एपिडीडिमिस से एक सिरिंज की सहायता से स्पर्म कलेक्ट किये जाते है। |
TESE : | यदि टेसा और पेसा प्रक्रिया से शुक्राणु को पुनः प्राप्त करने में असफलता होती है तो TESE (टेस्टिक्युलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन) की प्रक्रिया की जाती है। |
MESA (माइक्रोसर्जिकल एपिडीडिमल स्पर्म एस्पिरेशन) : | एक ओपन सर्जिकल स्पर्म रिट्राइव्हल प्रक्रिया है, जो एपिडीडिमिस के नलिकाओं का सटीक पता लगाने के लिए एक ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप का उपयोग करती है, ताकि बड़ी संख्या में शुक्राणु निकाले जा सकें। |
माइक्रो-TESE : | यह एक सर्जिकल स्पर्म रिट्राइव्हल प्रक्रिया है। इससे ज्यादातर स्पर्म रिकव्हरी रेट पाया जाता है। पोस्ट ऑपरेशन और टेस्टिक्युलर फंक्शन में कॉम्प्लीकेशन्स कम होते है। |
नॉन-ऑब्सट्रक्टिव एजूस्पर्मिया के इलाज :
- जीवन शैली में बदलाव करें।
- मेडिकेशन्स : गोनैडोट्रोपिन हमें का प्रोडक्शन संतुलित किया जाता है। FSH, LH, HCG का प्रोडक्शन संतुलित किया जाता है। है। इससे स्पर्म प्रोडक्शन ठीक हो सकता है।
- toxic पदार्थों से बचना शुरू करें।
- असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी : ICSI : इसमें स्पर्म को छोटेसे निढाल से निकला जाता है और IVF किया जाता है। या फिर स्पर्म को स्त्रीबीज में इंजेक्ट किया जाता है।
- डोनर प्रोग्राम : यदि आपको जन्मजात अंडकोष नहीं होने की वजह से एज़ूस्पर्मिया है और आप पिता बनाना चाहते है, तो आप डोनर स्पर्म यूज कर सकते है। इसके लिए लीगल प्रोसेस से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया में एक डोनर पुरुष के शुक्राणु के साथ महिला के अंडे को फर्टिलाइज़ किया जाता है, फिर भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
सीमेन एनालिसिस की प्रक्रिया जानने के लिए लिंक पर क्लिक करे :
https://progenesisivf.com/sperm-abnormality-in-marathi/
FAQs: अधिक सर्च किये जाने वाले प्रश्न:
१) क्या खाने से स्पर्म घटता है?
जवाब : बता दें जिन पुरुषों की डाइट में ज्यादा वेस्टर्न फूड्स जैसे पिज्जा,फ्राइज, स्वीट्स, सोडा और रेड मीट आदि शामिल होता है उन पुरुषों का स्पर्म काउंट सामान्य डाइट लेने वाले लोगों की अपेक्षा कम होता है।
२) स्पर्म प्रोडक्शन बढ़ने के लिए क्या करे ?
जवाब : फॉलिक एसिड, विटामिन A,B,E, एलिसिन, ब्रोमिलेन, एमिनो एसिड, ओमेगा 3, लाइकोपिन ये घातक स्पर्म प्रोडक्शन बढ़ने में मदत करते है। इसके लिए आहार में टमाटर, अखरोड, गाजर, लहसुन, डार्क चॉकलेट, अंडे इनका समावेश करे। समय पर संतुलित आहार ले। अच्छी और पूरी नींद लेना फायदेमंद होता है। अल्कोहोल, स्मोकिंग, रेड मिट अदि चीजों से दूर रहे। ताजे फल सेवन करे जिसमे अनार, ब्ल्यू बेरी, स्ट्रॉबेरी, अवाकाडो, कीवी, केले, संतरे, आम इन फलो का समावेश हो।