लेप्रोस्कोपिक सर्जरी को इनवेसिव सर्जरी या की होल सर्जरी भी कहा जाता है। सर्जिकल फिल्ड में यह एक क्रांतिकारी पद्धति मानी जाती है। क्योंकि यह तकनीक कम जख्म और जल्दी रिकव्हरी के साथ मरीज को कई फायदे देती है।
लेप्रोस्कोपी की मदत से सटीक निदान एवं उपचार किया जा सकता है। इसलिए लैप्रोस्कोपी और लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में अंतर है। लेप्रोस्कोपी के मदत से पेट के सभी अंगो को बारकाई से देखना और रिप्रॉडक्टिव्ह ऑर्गन का काम नजदीकिसे देखना यानि डिग्नोसिस करना संभव हुआ है।
फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में लेप्रोस्कोपी का विशेष महत्त्व है। लेप्रोस्कोपी के मदत से आपके वन्ध्यत्व समस्या का सटीक निदान हो सकता है। साथ ही डायग्नोसिस करते समय यदि गड़बड़ी नजर आए तो डॉक्टर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की मदत से उपचार भी करते है। इससे गर्भधारण के रास्ते खुले हो जाते है।
इनफर्टिलिटी के सफर में लेप्रोस्कोपी की भूमिका क्या है? लेप्रोस्कोपी क्या होती है? कैसे की जाती है? लेप्रोस्कोपी की जरुरत किसे होती है? रिकव्हरी कब होती है? लेप्रोस्कोपी के लाभ क्या है? ऐसे कई सवालों के जवाब जानने के लिए अंत तक बने रहे।
लेप्रोस्कोपी क्या है ?
‘लेप्रो’ का अर्थ है ‘शरीर’। और ‘स्कोप’ का मतलब है ‘देखना’। लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में पेट पर नाभि के नजदीक १ सेंटीमीटर से भी छोटे चीरे लगाना शामिल है। यह एक आधुनिक सर्जिकल तकनीक है जिसमें विशेष उपकरणों का उपयोग करके छोटे चीरों के माध्यम से प्रक्रियाए करना शामिल है।
गर्भधारण में लेप्रोस्कोपी की भूमिका
अक्सर शुरुवाती ट्रीटमेंट में डॉक्टर अल्ट्रासाउंड जैसे कई परीक्षणों से आपका वन्ध्यत्व निवारण करने की कोशिश करते है। लेकिन अगर रिपोर्ट नार्मल होने के बावजूद आपको गर्भधारण में कठिनाई है, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट फेल हो रही है, इम्प्लांटेशन में दिक्कत है, तो ऐसी स्थिति में आपके केस का डिटेल स्टडी करने हेतु डॉक्टर आपको लेप्रोस्कोपी का सुझाव दे सकते है। क्योंकि जो चीजें सोनोग्राफी में डायग्नोस नहीं हो सकती वह लेप्रोस्कोपी के मदत से सटीक निदान एवं उपचार संभव है। संक्षेप में लेप्रोस्कोपी की मदत से गर्भधारण का सक्सेस रेशो बढ़ जाता है।
वन्ध्यत्व समस्या में लेप्रोस्कोपी के फायदे
- फाइब्रॉइड की गांठ हटाना : फाइब्रॉइड अगर सर्विकल एरिया में है या यूटेरस में बड़े आकार का फाइब्रॉइड है तो स्पर्म यूटेरस में एंटर नहीं कर सकते। इस कारन इनफर्टिलिटी समस्या होती है। फैलोपियन ट्यूब के नजदीक फाइब्रॉइड होनेपर ट्यूब पर प्रेशर आता है, ट्यूब ब्लॉक होती है और इस स्थिति में कंसेप्शन नहीं हो पाता। एंडोमेट्रियम में फाइब्रॉइड होनेपर इम्प्लांटेशन समस्या होती है। साथ ही गर्भ बढ़ने में दिक्कत होती है। ऐसे सारे फाइब्रॉइड लप्रोस्कोपिक सर्जरी से हटाना संभव है। इससे गर्भधारण आसान हो जाता है।
- अडेनोमायोसीस : अडेनोमायोसीस यानि गर्भाशय में सूजन की वजह से यूटेरस बल्कि होता है। यूटेरियन लायनिंग ठीक नहीं बनने के साथ साथ गर्भधारण में कठिनाई होती है। ऐसे स्थिति का निदान लैप्रोस्कोपी के मदत से संभव है।
- हीड्रोसेलपिंक्स : हीड्रोसेलपिंक्स यानि फैलोपियन ट्यूब में पानी भरा हुआ होता है। इससे कंसेप्शन नहीं हो पाता। अगर कंसेप्शन हो भी जाए तो ट्यूब का पानी गर्भाशय में ठिबकने लगता है। इस वजह गर्भ इम्प्लांट नहीं हो पाता। इस स्थिति में लेप्रोस्कोपी की मदत से ट्यूब को काट दिया जाता है। इसे डिलिंकिंग कहते है।
- एन्डोमेट्रिओसिस : इस स्थिति में गर्भाशय के अंदर की परत यानि ‘एंडोमेट्रियम टिश्यूज’ ट्यूब्ज़, ओवरीज या पेट के अन्य अंगो में बढ़ने लगते है। ओव्हरीज में एंडोमेट्रियम टिश्यूज रहनेपर ‘चॉकलेट सिस्ट’ बनते है; जिससे ओवुलेशन समस्या निर्माण होती है। एंडोमेट्रिओसिस से फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक होती है और फर्टिलाइज़ेशन रोक दिया जाता है। ऐसी स्थिति का निदान एवं उपचार लेप्रोस्कोपी की मदत से किया जाता है।
- अडेशन्स : एंडोमेट्रिओसिस अगर गंभीर रूप धारण कर लेता है, तब पेट के अंग एक दूसरे से चिपक जाते है, इसे अडेशन्स कहते है। ऐसे अडेशन्स को दूर करना लैप्रोस्कोपी के मदत से संभव है।
- ओवरियन सिस्ट : PCOS/ PCOD के स्थिति में ओवुलेशन नियमित रूप से नहीं होता है। एक साथ कई सारे एग्ज आधे अधूरे बढ़ते है और सिस्ट बनते है। यह सिस्ट ओवरियन कैंसर में ट्रांसफॉर्म हो सकते है। इसलिए ऐसे सिस्ट लेप्रोस्कोपिक ओव्हरीयन ड्रिलिंग की मदत से निकल दिए जाते है।
- ब्लॉक और डैमेज फैलोपियन ट्यूब : फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक होनेपर लेप्रोस्कोपी की मदत से ब्लॉकेज हटा दिए जाते है। अगर ट्यूब डैमेज या ख़राब है तो कांट दिए जाते है।
आपके वन्ध्यत्व समस्या का निदान नहीं हो रहा है? तो आज ही करे मोफत कंसल्टेशन।
Free consultationलेप्रोस्कोपी कैसे की जाती है?
- लेप्रोस्कोपी के लिए सबसे पहले एनेस्थेशिया दिया जाता है। नाभी के नजदिक १ सेंटीमीटर से छोटा चिरा दिया जात है। उपकरण के आगे एक ड्रिल रहता है, यह ड्रिल चीरे के माध्यम से पेट के अंदर डाला जाता है
- लेप्रोस्कोपिक डायग्नोसिस प्रोसेस : डायग्नोस्टिक लैप्रोस्कोपी के दौरान पेट की छवियां एकत्र की जाती हैं। कभी-कभी ऊतक के नमूने काटकर जांच के लिए दिए जाते हैं। तो कुछ मामलों में, पेट का अंग भी निकालकर जाँच के लिए भेजा जाता है।
- लेप्रोस्कोपिक सर्जरी / लेप्रोस्कोपिक उपचार पद्धति : कई बार निदान के दौरान यदि कोई छोटी-मोटी समस्या नजर आती है तो उसका तुरंत इलाज किया जाता है। इस बात की पूर्वकल्पना मरीज को पहलेसे ही दी जाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छोटा ट्यूमर हो तो उसे जला दिया जाता है या फिर निकाल लिया जाता है। यदि दो अंग चिपक गए हों तो इसका तुरंत इलाज किया जाता है और इसका सकारात्मक परिणाम भी मिलता है।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी दौरान मोटलिफ़ाइड व्ह्यू यानी संगणक पर पेट के अंदर की स्थिति को देखा जाता है। आवश्यकतानुसार डॉक्टर ड्रिल के आगे छोटे-छोटे उपकरण लगाकर सर्जरी करते है। जिसमें कटिंग, सिलाई, हैंडलिंग शामिल है। इसके अलावा, उपयोग किए जाने वाले उपकरण बहुत छोटे और पतले होते है। सर्जरी के दौरान नाजुक तरीके से उपचार किया जाता है। किसी भी अन्य सर्जिकल प्रक्रिया की तरह, लेप्रोस्कोपी के पहले एनेस्थीसिया दिया जाता है।
लैप्रोस्कोपी के प्रकार
1 | टेलिस्कोपिक रॉड लेन्स प्रणाली | आमतौर पर एक वीडियो कैमरे से जुड़ा होता है (सिंगल-चिप सीसीडी या थ्री-चिप सीसीडी) |
2 | डिजिटल लॅपरोस्कोप | जहां लेप्रोस्कोप के अंत में एक लघु डिजिटल वीडियो कैमरा रखा जाता है, वहां रॉड लेंस सिस्टम को हटा देती है। |
लेप्रोस्कोपी के फायदे:
- कम आक्रमक प्रोसेस है।
- स्किन पर कम स्कार्स आते है। सौंदर्यशास्त्र का ख्याल रखा जाता है।
- अस्पताल में भर्ती नहीं होने पड़ता।
- कम समय में रिकव्हरी होती है।
- इंफेक्शन की जोखिम कम होती है।
- कॉम्प्लीकेशंस होने के चांसेस कम होते है।
- यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है।
- वन्ध्यत्व समस्या में फायदेमंद है।
लेप्रोस्कोपी जैसे कई आधुनिक सुविधाए प्रोजेनेसिस फर्टिलिटी सेंटर में उपलब्ध है। अच्छे रिज़ल्ट के लिए आज ही संपर्क करे।
Free consultationलेप्रोस्कोपी के लिए कैसे तैयारी करे?
- अपने सर्जन से परामर्श ले। प्रक्रिया को पूरी तरह समझ ले।
- विशिष्ट आहार और जीवन शैली प्रतिबंधों का पालन करने की आवश्यकता हो सकती है।
- दवाइया ठीक से लेना जरुरी है।
लेप्रोस्कोपी की सिफारिश किसे दी जाती है?
- एक्टोपिक गर्भधारण होनेपर यानि फलोपियन ट्यूब में गर्भ बढ़ने लगता है तब उसे निकलना जरुरी होता है। इससे माता के जीवन को खतरा हो सकता है। इस स्थिति में डॉक्टर लैप्रोस्कोपी की सिफारिश करते है।
- शारीरिक सम्बन्ध के वक्त दर्द है तब लैप्रोस्कोपी का सुझाव दिया जाता है।
- गर्भधारण में कठिनाई होनेपर
- मिस्करेजेस या फर्टिलिटी ट्रीटमेंट फेल होनेपर
- पीरियड्स दर्दनाक होनेपर या हेवी ब्लीडिंग होनेपर
- आपकी समस्या का निदान बाकि परीक्षणों से करना मुश्किल होनेपर डॉक्टर लैप्रोस्कोपी की सिफारिश देते है।
लेप्रोस्कोपी के बारे में अधिक सर्च किए जानेवाले प्रश्न
पहली लेप्रोस्कोपी कब हुई?
जवाब : एक जर्मन सर्जन डॉ. एरिच मुहे ने 1985 में पहली लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी (पित्ताशय की थैली को हटाना) किया, जो लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के इतिहास में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ। तब से, लेप्रोस्कोपिक तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाया गया है और विभिन्न सर्जिकल प्रक्रियाओं में लागू किया गया है।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी से ठीक होने में कितना समय लगता है?
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के बाद रिकवरी का समय विशिष्ट प्रक्रिया और व्यक्तिगत आधार पर भिन्न हो सकता है। अधिकांश मरीज़ सर्जरी के बाद कुछ हफ्तों के भीतर अपना डेली रूटीन शुरू कर सकते है।
क्या लेप्रोस्कोपी ऑपरेशन दर्दनाक है?
लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया सामान्य ऐनेस्थिशिया के प्रभाव में की जाती है, जिसमें पूरी प्रक्रिया के दौरान कुछ भी महसूस नहीं होगा। एनेस्थीसिया का प्रभाव कम होने पर दवाई दी जाती है, जिससे दर्द नहीं होता।