IVF में कई स्टेप्स होते हैं, और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण स्टेप है “ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण” यानी Blastocyst Transfer। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण क्या होता है, इसके फायदे क्या हैं, और इसमें क्या-क्या चुनौतियाँ आती हैं। इसे आसान भाषा में समझने की कोशिश करेंगे ताकि हर कोई इसे अच्छे से समझ सके।
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण (Blastocyst Transfer) क्या है?
सबसे पहले ये समझते हैं कि ब्लास्टोसिस्ट क्या होता है। जब एक पुरुष का स्पर्म और एक महिला का एग आपस में मिलते हैं, तो उसे फर्टिलाइजेशन कहते हैं। ये आमतौर पर शरीर के अंदर होता है, लेकिन IVF की प्रक्रिया में ये लैब में किया जाता है। फर्टिलाइजेशन के बाद जो बनता है, उसे एम्ब्रियो (Embryo) कहते हैं। ये एम्ब्रियो धीरे-धीरे बढ़ता है और कई स्टेज से गुजरता है। करीब 5 से 6 दिन बाद ये एक खास स्टेज पर पहुंचता है, जिसे ब्लास्टोसिस्ट कहते हैं।
ब्लास्टोसिस्ट एक ऐसा एम्ब्रियो होता है जो अब थोड़ा बड़ा हो चुका है और इसके अंदर कोशिकाएं दो हिस्सों में बंटने लगती हैं – एक हिस्सा जो भविष्य में शिशु बनेगा और दूसरा जो प्लेसेंटा (placenta) का निर्माण करेगा। Blastocyst Transfer में यही ब्लास्टोसिस्ट स्टेज वाला एम्ब्रियो महिला के गर्भाशय (uterus) में डाला जाता है, ताकि वो वहां सेट हो सके और प्रेगनेंसी शुरू हो सके।
IVF में ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण क्यों खास है?
IVF में पहले ऐसा होता था कि एम्ब्रियो को 2 या 3 दिन में ही गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता था। लेकिन अब डॉक्टर ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक इंतजार करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्टेज तक एम्ब्रियो की क्वालिटी और मजबूती का पता चल जाता है। जो एम्ब्रियो 5-6 दिन तक बढ़ पाता है, उसके सक्सेसफुल प्रेगनेंसी में बदलने की संभावना ज्यादा होती है।
यह भी पढ़ें: अवरुद्ध गर्भनलिका क्या होती है? कारन, लक्षण, और इलाज
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण की प्रक्रिया
अब जानते हैं कि ये प्रक्रिया कैसे होती है। इसे स्टेप-बाय-स्टेप समझते हैं:
एग्स और स्पर्म कलेक्शन:
सबसे पहले महिला के शरीर से एग्स निकाले जाते हैं और पुरुष से स्पर्म लिया जाता है। ये दोनों लैब में मिलाए जाते हैं यानी फर्टिलाइजेशन किया जाता है।
लैब में एम्ब्रियो तैयार करना:
फर्टिलाइजेशन के बाद एम्ब्रियो को लैब में खास मशीनों में रखा जाता है, जहां वो बढ़ता है। डॉक्टर रोज इसकी ग्रोथ चेक करते हैं।
ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक इंतजार:
5-6 दिन तक एम्ब्रियो को बढ़ने दिया जाता है, ताकि वो ब्लास्टोसिस्ट बन जाए। इस दौरान कमजोर एम्ब्रियो बढ़ नहीं पाते और सिर्फ मजबूत एम्ब्रियो ही आगे बढ़ते हैं।
ट्रांसफर की तैयारी:
जब ब्लास्टोसिस्ट तैयार हो जाता है, तो महिला को इसके लिए तैयार किया जाता है। इसमें हल्की दवाइयाँ दी जा सकती हैं ताकि गर्भाशय तैयार हो जाए।
ट्रांसफर करना:
एक पतली ट्यूब की मदद से ब्लास्टोसिस्ट को गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। ये प्रोसेस ज्यादा दर्दनाक नहीं होता और कुछ ही मिनट में पूरा हो जाता है।
इंतजार और टेस्ट:
ट्रांसफर के बाद 10-14 दिन तक इंतजार करना पड़ता है, फिर प्रेगनेंसी टेस्ट किया जाता है यह जानने के लिए कि प्रोसेस सक्सेसफुल हुआ या नहीं।
यह भी पढ़ें: एनओव्यूलेशन (Anovulation) : पहचान, कारण और इलाज
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण के फायदे
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण के कई फायदे हैं, जो इसे IVF का एक पॉपुलर तरीका बनाते हैं। इन फायदों को विस्तार से समझते हैं:
1. सक्सेस रेट ज्यादा होना –
ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक पहुंचने वाले एम्ब्रियो मजबूत होते हैं। इनके गर्भाशय में सेट होने और प्रेगनेंसी में बदलने की संभावना पुराने तरीकों से ज्यादा होती है। इससे जोड़ों को बार-बार IVF कराने की जरूरत कम पड़ती है।
2. कम एम्ब्रियो ट्रांसफर करना –
पुराने तरीकों में डॉक्टर एक साथ 2-3 एम्ब्रियो ट्रांसफर करते थे ताकि सक्सेस की चांस बढ़े। लेकिन इससे कई बार जुड़वा बच्चे या ट्रिपलेट्स का जन्म हो जाता था। लेकिन अब ब्लास्टोसिस्ट में सिर्फ 1 या 2 मजबूत एम्ब्रियो ट्रांसफर किए जाते हैं, जिससे ऐसा होना कम हो जाता है।
3. एम्ब्रियो की क्वालिटी चेक करना –
5-6 दिन तक एम्ब्रियो को लैब में रखने से डॉक्टर को पता चल जाता है कि कौन सा एम्ब्रियो अच्छा है और कौन सा कमजोर। कमजोर एम्ब्रियो को ट्रांसफर करने से कोई फायदा नहीं होता, इसलिए सिर्फ बेस्ट क्वालिटी वाले एम्ब्रियो ही चुने जाते हैं।
4. गर्भाशय के साथ बेहतर तालमेल –
ब्लास्टोसिस्ट स्टेज पर एम्ब्रियो ट्रांसफर करने से वो गर्भाशय के साथ बेहतर तरीके से सेट हो पाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये स्टेज प्राकृतिक प्रेगनेंसी के करीब होती है, जब एम्ब्रियो गर्भाशय में पहुंचता है।
5. जेनेटिक टेस्टिंग का मौका –
ब्लास्टोसिस्ट स्टेज पर एम्ब्रियो की जेनेटिक टेस्टिंग (PGT – Preimplantation Genetic Testing) आसानी से की जा सकती है। इससे पता चलता है कि एम्ब्रियो में कोई गड़बड़ी तो नहीं। ये उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है जिनके परिवार में जेनेटिक प्रॉब्लम्स की हिस्ट्री है।
यह भी पढ़ें: इनफर्टिलिटी क्या है? इनफर्टिलिटी समस्या में क्या करे?
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण की चुनौतियाँ
हर चीज के फायदे के साथ कुछ चुनौतियाँ भी होती हैं। ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण में भी कुछ मुश्किलें आती हैं, जिन्हें समझना जरूरी है:
1. सभी एम्ब्रियो ब्लास्टोसिस्ट तक नहीं पहुंचते –
कई बार ऐसा होता है कि लैब में एम्ब्रियो बढ़ना शुरू तो करते हैं, लेकिन 5-6 दिन तक नहीं टिक पाते। अगर कोई एम्ब्रियो ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक नहीं पहुंचता, तो ट्रांसफर ही नहीं हो पाता। ऐसे में पेशेंट को फिर से IVF प्रोसेस शुरू करना पड़ सकता है।
2. लंबा इंतजार –
पुराने तरीके में 2-3 दिन में ट्रांसफर हो जाता था, लेकिन ब्लास्टोसिस्ट में 5-6 दिन इंतजार करना पड़ता है। ये इंतजार पेशेंट्स के लिए इमोशनली मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वो जल्दी रिजल्ट चाहते हैं।
3. खर्चा ज्यादा होना –
ब्लास्टोसिस्ट तक एम्ब्रियो को लैब में रखने के लिए खास टेक्नोलॉजी और एक्सपर्ट की जरूरत पड़ती है। इससे IVF का खर्चा थोड़ा बढ़ सकता है। हर कोई इसे अफोर्ड नहीं कर पाता।
4. कम एम्ब्रियो बचना –
चूंकि सिर्फ मजबूत एम्ब्रियो ही ब्लास्टोसिस्ट तक पहुंचते हैं, तो कई बार ट्रांसफर के लिए बहुत कम एम्ब्रियो बचते हैं। अगर ये सक्सेसफुल नहीं हुए, तो दोबारा प्रोसेस शुरू करना पड़ता है।
5. हर पेशेंट के लिए सही नहीं –
कुछ महिलाओं का शरीर या उनकी मेडिकल कंडीशन ऐसी होती है कि उनके लिए ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर सही नहीं होता। ऐसे में डॉक्टर पुराने तरीके का सुझाव दे सकते हैं।
यह भी पढ़ें: गर्भधारण करने में समस्या? जानिए मेडिकल और फर्टिलिटी उपचार
किन कपल्स के लिए ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण उपयुक्त है?
हर पेशेंट की स्थिति अलग होती है, इसलिए ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर हर किसी के लिए सही नहीं हो सकता। ये कुछ खास स्थितियों में ज्यादा फायदेमंद होता है:
(A) जिनका पहला IVF असफल हुआ हो
अगर कपल को पहले IVF में सफलता नहीं मिली है, तो ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर से गर्भधारण की संभावना बढ़ सकती है।
(B) जिन्हें एकल भ्रूण स्थानांतरण (Single Embryo Transfer) चाहिए
जिन्हें मल्टीपल प्रेग्नेंसी का जोखिम कम करना है, उनके लिए ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
(C) जिनकी एम्ब्रियो की गुणवत्ता अच्छी हो
युवा महिलाओं में अच्छी गुणवत्ता वाले एम्ब्रियो होते हैं, जो ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक पहुंच सकते हैं और सफल इम्प्लांटेशन की संभावना बढ़ा सकते हैं।
(D) जो PGT कराना चाहते हैं
अगर कपल को आनुवंशिक बीमारियों की चिंता है, तो ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर से पहले PGT टेस्ट करके स्वस्थ एम्ब्रियो चुना जा सकता है।
डॉक्टर आपके टेस्ट और हिस्ट्री देखकर बताएंगे कि आपके लिए ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर सही है या नहीं।
यह भी पढ़ें: फाइब्रॉइड्स क्या हैं? जानें कारण, लक्षण और सही इलाज |
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण से पहले और बाद में सावधानियाँ
इस प्रोसेस को सक्सेसफुल बनाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण से पहले:
1. हेल्दी डाइट लें।
2. स्मोकिंग या शराब से दूर रहें।
3. डॉक्टर की बताई दवाइयाँ समय पर लें।
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण के बाद में:
1. भारी काम न करें।
2. ज्यादा स्ट्रेस न लें।
3. डॉक्टर से रेगुलर चेकअप करवाएं।
यह भी पढ़ें: अगर बार-बार IUI फेल हो जाए तो गर्भधारण करने के लिए क्या करें?
ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर से जुड़े कुछ सवाल और जवाब
क्या ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर दर्दनाक होता है?
– नहीं, ये प्रोसेस ज्यादा दर्दनाक नहीं होता। एक पतली ट्यूब से एम्ब्रियो डाला जाता है, जिसमें हल्की असहजता हो सकती है, लेकिन दर्द नहीं।
सक्सेस रेट कितना है?
– ये पेशेंट की उम्र, एम्ब्रियो की क्वालिटी और गर्भाशय की स्थिति पर निर्भर करता है। आमतौर पर ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर का सक्सेस रेट 40-50% तक हो सकता है।
क्या इसके बाद नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है?
– हां, अगर प्रेगनेंसी सक्सेसफुल होती है, तो नॉर्मल डिलीवरी या C-section दोनों संभव हैं। ये मां और बच्चे की हेल्थ पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष –
ब्लास्टोसिस्ट स्थानांतरण एक एडवांस IVF तकनीक है, जिससे गर्भधारण की सक्सेस रेट बढ़ सकती है। हालांकि, यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं होता और इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हो सकती हैं। अगर आप IVF करा रहे हैं, तो अपने डॉक्टर से सलाह लें कि ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर आपके लिए सही विकल्प है या नहीं।
यह तकनीक उन दंपतियों के लिए एक उम्मीद की किरण हो सकती है, जो लंबे समय से संतान सुख की प्रतीक्षा कर रहे हैं।