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स्पर्म काउंट टेस्ट: कब और क्यों करें? जानिए सही जानकारी

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रिसर्च बताती है कि इनफर्टिलिटी के लगभग 40% केस पुरुषों की वजह से होते हैं। स्पर्म काउंट यानी शुक्राणुओं की संख्या पुरुषों की फर्टिलिटी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर स्पर्म काउंट कम हो, तो नेचुरली प्रेग्नेंसी कंसीव होने में दिक्कत आती है। इसी वजह से डॉक्टर अक्सर पुरुषों को स्पर्म काउंट टेस्ट (Semen Analysis Test) कराने की सलाह देते हैं।

इस ब्लॉग में हम बात करेंगे "स्पर्म काउंट टेस्ट" के बारे में। यह टेस्ट कब करवाना चाहिए, क्यों जरूरी है, कैसे किया जाता है, और इससे जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी। चलिए शुरू करते हैं!

स्पर्म काउंट क्या है?

सबसे पहले जानते हैं कि स्पर्म काउंट क्या होता है। स्पर्म यानी शुक्राणु, जो पुरुषों के शरीर में बनते हैं। ये छोटे-छोटे जीव होते हैं, जो महिला के स्त्रीबीज से मिलकर भ्रूण यानि बच्चा बनाते हैं। स्पर्म काउंट का मतलब है कि एक बार में निकलने वाले वीर्य (सफेद तरल पदार्थ) में कितने शुक्राणु मौजूद हैं।

सामान्य रूप से, एक स्वस्थ पुरुष के वीर्य में प्रति मिलीलीटर 15 मिलियन से ज्यादा शुक्राणु होने चाहिए। कुल मिलाकर, पूरे सैंपल में 39 मिलियन से ज्यादा शुक्राणु होने चाहिए। अगर इससे कम हो, तो इसे "लो स्पर्म काउंट" कहते हैं। लेकिन सिर्फ संख्या ही नहीं, शुक्राणुओं की गति (मोटिलिटी), आकार (मॉर्फोलॉजी) और वीर्य की मात्रा भी महत्वपूर्ण है।

संख्या इतनी जरूरी क्यों है?

शुक्राणुओं को महिला के शरीर में स्त्रीबीज तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। रास्ते में कई बाधाएं आती हैं, जैसे अम्लता या अन्य चीजें। इसलिए ज्यादा संख्या में शुक्राणु होने से सफलता की संभावना बढ़ जाती है। अगर संख्या कम हो, तो स्त्रीबीज तक पहुंचने वाले शुक्राणु कम बचते हैं, और प्रेग्नेंसी होने में मुश्किल होती है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए आप एक पार्टी में जा रहे हैं और वहां बहुत सारे लोग हैं। अगर आप अकेले हैं, तो दोस्त मिलने की संभावना कम है, लेकिन अगर आपका ग्रुप बड़ा है, तो आसानी से मिल जाते हैं। ठीक वैसे ही स्पर्म काउंट काम करता है। अब आप सोच रहे होंगे कि स्पर्म काउंट कम क्यों होता है? हम आगे विस्तार से बताएंगे, लेकिन पहले टेस्ट के बारे में जानते हैं।

यह भी पढ़ें: सीमेन एनालिसिस क्या है? सीमेन एनालिसिस टेस्ट क्यों करते है?

स्पर्म काउंट टेस्ट क्या है? 

स्पर्म काउंट टेस्ट को सीमेन एनालिसिस भी कहते हैं। यह एक साधारण जांच है, जो पुरुषों की फर्टिलिटी को जांचती है। इस टेस्ट में सीमेन (वीर्य के) सैंपल को लैब में जांचा जाता है। डॉक्टर या लैब टेक्नीशियन माइक्रोस्कोप से देखते हैं कि शुक्राणु कितने हैं, कितने तेज़ चलते हैं, उनका आकार कैसा है, और वीर्य कितना गाढ़ा या पतला है।

यह टेस्ट सिर्फ स्पर्म काउंट ही नहीं बताता, बल्कि पूरी तस्वीर देता है। जैसे:

- स्पर्म काउंट: शुक्राणुओं की संख्या कितनी है।

- मोटिलिटी: शुक्राणु कितनी तेज़ी से आगे बढ़ते हैं। कम से कम 40% शुक्राणुओं को अच्छी गति से चलना चाहिए।

- मॉर्फोलॉजी: शुक्राणुओं का आकार। कम से कम 4% शुक्राणुओं का आकार सामान्य होना चाहिए।

- वीर्य की मात्रा: सामान्यतः 1.5 मिलीलीटर से ज्यादा होना चाहिए।

- पीएच लेवल: वीर्य कितना एसिडिक (अम्लीय) या अल्कलाइन (क्षारीय) है।

यह टेस्ट अस्पताल, क्लिनिक या फर्टिलिटी सेंटर में होता है। यह दर्दरहित है और इसे ज्यादा समय नहीं लगता। कई बार एक टेस्ट काफी नहीं होता, क्योंकि स्पर्म काउंट दिन-ब-दिन बदल सकता है। इसलिए डॉक्टर 1-2 हफ्तों के अंतर पर 2-3 टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं।

क्या यह टेस्ट महंगा है?
नहीं, भारत में यह 500 से 2000 रुपये तक हो सकता है, जगह पर निर्भर करता है। लेकिन याद रखें, यह एक इन्वेस्टमेंट है आपकी अच्छी सेहत और खुशहाल परिवार के लिए।

यह भी पढ़ें: स्पर्म काउंट जाने: लक्षण, कारण और सुधारने के उपाय

स्पर्म काउंट टेस्ट क्यों जरूरी है? 

स्पर्म काउंट टेस्ट सिर्फ एक जांच नहीं, बल्कि पुरुषों की फर्टिलिटी हेल्थ का आईना है। कई लोग सोचते हैं कि इनफर्टिलिटी यह सिर्फ महिलाओं की समस्या है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि 40-50% मामलों में पुरुष जिम्मेदार होते है। इसलिए यह टेस्ट जरूरी है।

स्पर्म काउंट टेस्ट क्यों जरूरी है, इसके कुछ और कारण - 

1. फर्टिलिटी समस्या का पता लगाना

अगर आप और आपकी पत्नी एक साल से प्रेग्नेंसी कंसीव करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो रहे, तो यह टेस्ट बताता है कि समस्या कहां है। अगर स्पर्म काउंट कम है, तो डॉक्टर सही इलाज सुझा सकते हैं, जैसे दवाएं या अन्य तरीके।

2. स्वास्थ्य की जांच

लो स्पर्म काउंट सिर्फ प्रेग्नेंसी से जुड़ी समस्या नहीं, बल्कि शरीर की अन्य दिक्कतों का संकेत हो सकता है। जैसे हार्मोन असंतुलन, इन्फेक्शन, या अन्य बीमारियां। उदाहरण के लिए, अगर टेस्टिकल्स (अंडकोष) में कोई समस्या है, तो स्पर्म कम बनते हैं। जल्दी पता चलने से इलाज आसान हो जाता है।

3. वासेक्टॉमी की जांच

अगर आपने नसबंदी करवाई है, तो यह टेस्ट यह पुष्टि करता है कि स्पर्म अब नहीं बन रहे। इससे अनचाही गर्भावस्था से बचाव होता है।

4. मन की शांति

कई पुरुष चिंता में रहते हैं कि उनकी सेहत ठीक है या नहीं। यह टेस्ट सब कुछ साफ कर देता है। अगर सब सामान्य है, तो चिंता दूर हो जाती है। अगर नहीं, तो सही दिशा में कदम उठा सकते हैं।

कई रिसर्च स्टडीज़ से पता चला है कि दुनिया भर में स्पर्म काउंट घट रहा है। वजहें हैं – प्रदूषण, तनाव, खराब खान-पान। इसलिए नियमित जांच जरूरी है। अब जानते हैं कि यह टेस्ट कब करवाना चाहिए।

यह भी पढ़ें: अशुक्राणुता (Azoospermia) की स्थिती में गर्भधारण कैसे करे?

स्पर्म काउंट टेस्ट कब करवाना चाहिए? 

टेस्ट करवाने का सही समय जानना जरूरी है, क्योंकि बेवजह जांच से पैसे और समय की बर्बादी होती है। लेकिन अगर सही समय पर करें, तो फायदा बहुत है।

पहला संकेत: प्रेग्नेंसी में दिक्कतें 

अगर आप शादीशुदा हैं और एक साल से असुरक्षित संबंध बना रहे हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी कंसीव नहीं हो रही, तो टेस्ट करवाएं। अगर पत्नी की उम्र 35 से ज्यादा है, तो 6 महीने बाद ही जांच शुरू करें। क्योंकि उम्र बढ़ने से फर्टिलिटी कम होती है।

दूसरा संकेत: शारीरिक लक्षण

अगर आपको शारीरिक संबंध बनाने में दिक्कत है, जैसे इरेक्शन (कठोरता) न आना, कामेच्छा कम होना, या दर्द होना, तो टेस्ट जरूरी है। कभी-कभी अंडकोष में सूजन या दर्द भी स्पर्म कम होने का संकेत है।

तीसरा संकेत: मेडिकल हिस्ट्री

अगर आपको पहले कोई बीमारी हुई है, जैसे कैंसर का इलाज (कीमोथेरेपी), या कोई सर्जरी, तो स्पर्म काउंट प्रभावित हो सकता है। दवाओं का असर भी पड़ता है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह पर टेस्ट करें।

चौथा संकेत: जीवनशैली

अगर आप ज्यादा धूम्रपान करते हैं, शराब पीते हैं, या मोटापे से ग्रस्त हैं, तो स्पर्म काउंट कम हो सकता है। अगर आपका काम गर्म जगह पर है (जैसे फैक्ट्री), तो भी जांच करवाएं।

पांचवां संकेत: उम्र

35-40 साल के बाद स्पर्म काउंट स्वाभाविक रूप से कम होता है। इसलिए अगर प्लानिंग है, तो पहले जांच लें।

याद रखें, डॉक्टर से सलाह लें। खुद से फैसला न लें। 

अब जानते हैं टेस्ट कैसे होता है।

यह भी पढ़ें: ओलिगोस्पर्मिया (Oligospermia) क्या है? कारण और इलाज

स्पर्म काउंट टेस्ट कैसे किया जाता है?

यह टेस्ट बहुत सरल है, लेकिन सही तरीके से करना जरूरी है। गलत सैंपल ��े रिजल्ट भी गलत आ सकते हैं।

स्टेप 1: अपॉइंटमेंट लें

क्लिनिक या लैब से समय लें। कुछ जगहों पर घर से सैंपल ला सकते हैं, लेकिन जल्दी पहुंचाएं, क्योंकि वीर्य जल्दी खराब हो सकता है।

स्टेप 2: सैंपल दें

क्लिनिक में एक प्राइवेट रूम में मास्टर्बेशन (हस्तमैथुन) से वीर्य निकालें। इसे एक साफ कंटेनर में इकट्ठा करें। कोई लुब्रिकेंट न इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे स्पर्म प्रभावित होते हैं।

स्टेप 3: लैब जांच

सैंपल को लैब में भेजा जाता है। वहां माइक्रोस्कोप से शुक्राणु गिने जाते हैं। कंप्यूटर की मदद से गति और आकार देखा जाता है।

स्टेप 4: रिजल्ट 

1-2 दिनों में रिपोर्ट मिलती है। डॉक्टर समझाते हैं।

कभी-कभी सैंपल घर पर भी लिया जा सकता है, लेकिन इसे 1 घंटे के भीतर लैब तक पहुंचाना जरूरी है। अगर सैंपल अधूरा है, तो दोबारा दें। अब तैयारी के बारे में।

यह भी पढ़ें: शुक्राणू संख्या कमी असल्यास गर्भधारणा कशी करावी?

स्पर्म काउंट टेस्ट की तैयारी कैसे करें? 

अच्छे रिजल्ट्स के लिए तैयारी जरूरी है। कुछ जरूरी टिप्स - 

1. वीर्य निकालने से बचें।

टेस्ट से 2-5 दिन पहले शारीरिक संबंध ना बनाएं या मास्टर्बेशन न करें। इससे स्पर्म संख्या ज्यादा होती है। लेकिन 7 दिन से ज्यादा न रुकें, क्योंकि स्पर्म पुराने हो जाते हैं।

2. स्वस्थ रहें

शराब, सिगरेट, कैफीन से दूर रहें। ड्रग्स बिल्कुल न लें। ये स्पर्म को नुकसान पहुंचाते हैं।

3. दवाएं बताएं

अगर कोई दवा ले रहे हैं, तो डॉक्टर को बताएं। कुछ दवाएं स्पर्म प्रभावित करती हैं।

4. आराम करें

तनाव स्पर्म कम करता है। टेस्ट से पहले अच्छी नींद लें।

5. साफ-सफाई

सैंपल देते समय हाथ साफ रखें। कंटेनर छूने से पहले धोएं।

ये छोटी बातें बड़े फर्क लाती हैं। अब रिजल्ट्स के बारे में।

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टेस्ट के रिजल्ट्स क्या बताते हैं? 

डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार, एक हेल्दी रिपोर्ट के लिए नॉर्मल स्टैंडर्ड्स (सामान्य मानक) इस प्रकार हैं:

वीर्य की मात्रा (Semen Volume): कम से कम 1.5 ml

स्पर्म काउंट (Sperm Count): कम से कम 15 मिलियन प्रति ml

स्पर्म मोटिलिटी (Motility): कम से कम 40% स्पर्म सक्रिय होने चाहिए

स्पर्म मॉर्फोलॉजी (Morphology): कम से कम 4% स्पर्म का आकार सामान्य होना चाहिए

pH: 7.2 से 8.0 के बीच

अगर स्पर्म काउंट कम है, तो इसे ओलिगोस्पर्मिया कहते हैं, और अगर शून्य है तो इसे एजूस्पर्मिया कहते हैं। रिपोर्ट में कुछ कम आती है, तो डॉक्टर आगे की जांच या ट्रीटमेंट बताते हैं। ट्रीटमेंट में दवाएं, सर्जरी या आईवीएफ हो सकता है।
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स्पर्म काउंट कम होने के कारण

इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जैसे - 

जीवनशैली: स्टडीज़ के अनुसार, धूम्रपान से स्पर्म 20% कम होते हैं। शराब लिवर प्रभावित करती है। मोटापा हार्मोन बिगाड़ता है और ज्यादा स्ट्रेस से स्पर्म काउंट कम होता है।

पर्यावरण: गर्मी (सॉना, टाइट अंडरवियर) स्पर्म काउंट कम करती है। प्रदूषण, कीटनाशक भी स्पर्म पर असर करते हैं।

हेल्थ कंडीशंस: हार्मोनल असंतुलन, डायबिटीज़, थायरॉइड, वैरिकोसील (नसों की सूजन), टेस्टिकल इंफेक्शन इन सभी हेल्थ कंडीशंस से स्पर्म काउंट कम होता है।

उम्र और आनुवंशिक: उम्र बढ़ने के कारण या कुछ जेनेटिक समस्या हो तो स्पर्म काउंट कम होता है।

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स्पर्म काउंट बढ़ाने के तरीके: 

अगर रिपोर्ट में स्पर्म काउंट कम आता है तो घबराने की ज़रूरत नहीं। सही गाइडेंस से इसे सुधारा जा सकता है।

(1) ���ाइफस्टाइल में बदलाव

• स्मोकिंग और शराब छोड़ें।

• रोज़ाना व्यायाम और योग करें।

• स्ट्रेस कम करने की कोशिश करें।

(2) हेल्दी डाइट

• प्रोटीन और विटामिन से भरपूर खाना खाएं।

• फल और हरी सब्ज़ियां ज़्यादा लें।

• ड्राई फ्रूट्स (बादाम, अखरोट) फायदेमंद हैं।

(3) डॉक्टर द्वारा दी गई दवाएं

कभी-कभी डॉक्टर हार्मोन बैलेंस करने या इंफेक्शन ठीक करने के लिए दवाएं देते हैं।

(4) एडवांस्ड ट्रीटमेंट

• IUI (Intrauterine Insemination)

IVF (In-Vitro Fertilization)

• ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection)

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निष्कर्ष

स्पर्म काउंट टेस्ट एक बहुत ही आसान लेकिन महत्वपूर्ण जांच है, जो पुरुषों के फर्टिलिटी हेल्थ की असली तस्वीर दिखाती है। इसे समय पर कराने से इनफर्टिलिटी के सही कारण का पता चलता है और सही ट्रीटमेंट चुना जा सकता है।

याद रखिए, इनफर्टिलिटी सिर्फ महिलाओं की समस्या नहीं है। पुरुषों का हेल्थ भी उतना ही ज़रूरी है। इसलिए अगर ज़रूरत हो तो बिना झिझक स्पर्म काउंट टेस्ट कराएं और एक्सपर्ट डॉक्टर से सही सलाह लें।

~ Verified by Progenesis Fertility Center's Expert Doctors

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