ऐसे में जब नेचुरल तरीके से प्रेग्नेंसी नहीं हो पाती तो लोग फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स की मदद लेते हैं।
आज हम बात करेंगे एक ऐसी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की, जो लाखों कपल्स की जिंदगी बदल रही है – ICSI ट्रीटमेंट (इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन)। IVF की तरह ही यह भी एक असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक है, लेकिन इसमें खास तरीका अपनाया जाता है।
इस ब्लॉग में हम ICSI के बारे में सभी ज़रूरी जानकारी जानेंगे और हर पॉइंट को विस्तार से समझेंगे। चलिए शुरू करते हैं!
ICSI क्या है?
ICSI का पूरा नाम है Intracytoplasmic Sperm Injection। सरल शब्दों में कहें तो ये एक स्पेशल तरीका है जिसमें स्पर्म को सीधे स्त्रीबीज के अंदर इंजेक्ट किया जाता है। ये IVF का ही एक हिस्सा है, लेकिन इसमें फर्टिलाइजेशन (यानी स्पर्म और स्त्रीबीज का मिलन) को और ज्यादा सटीक बनाया जाता है।
कल्पना कीजिए, सामान्य तरीके से प्रेग्नेंसी कंसीव होने के लिए स्पर्म को खुद स्त्रीबीज तक पहुंचना पड़ता है। लेकिन कभी-कभी स्पर्म कमजोर होते हैं या उनकी संख्या कम होती है, तो वो ये काम नहीं कर पाते। ICSI में डॉक्टर एक माइक्रोस्कोप की मदद से एक हेल्दी स्पर्म चुनते हैं और उसे एक पतली सुई से स्त्रीबीज के बीच में डाल देते हैं। इससे फर्टिलाइजेशन की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
ये तकनीक 1990 के दशक में शुरू हुई थी और आज दुनिया भर में लाखों बच्चे इसके जरिए जन्म ले चुके हैं। ICSI मुख्य रूप से मेल इनफर्टिलिटी (पुरुषों में नि:संतानता की समस्या) के लिए इस्तेमाल होती है, लेकिन कभी-कभी महिलाओं की समस्याओं में भी मदद करती है।
कई लोग सोचते हैं कि ICSI कोई अलग ट्रीटमेंट है, लेकिन असल में ये IVF प्रोसेस का ही एक स्टेप है। IVF में स्त्रीबीज को बॉडी से बाहर निकालकर स्पर्म के साथ मिलाया जाता है, लेकिन ICSI में मिलाने का तरीका इंजेक्शन वाला होता है। इससे सफलता की दर बढ़ जाती है, खासकर उन मामलों में जहां स्पर्म खुद से स्त्रीबीज में नहीं घुस पाते।
अब थोड़ा और डीटेल में समझते हैं। स्त्रीबीज एक छोटी सी सेल होती है, जिसके चारों तरफ एक प्रोटेक्टिव लेयर होती है। स्पर्म को इस लेयर को पार करके अंदर जाना पड़ता है। ICSI में डॉक्टर इस काम को खुद कर देते हैं, ताकि कोई चांस न छूटे। ये प्रक्रिया लैब में होती है, जहां सब कुछ कंट्रोल्ड एनवायरमेंट में रखा जाता है।
ICSI की जरूरत क्यों पड़ती है, ये हम अगले सेक्शन में देखेंगे, लेकिन पहले ये जान लीजिए कि ये ट्रीटमेंट हर किसी के लिए नहीं है। डॉक्टर पहले टेस्ट करते हैं और फिर सलाह देते हैं। अगर आप इस बारे में सोच रहे हैं, तो सबसे पहले एक अच्छे फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से मिलें।
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ICSI कब ज़रूरी होता है?

ICSI हर IVF केस में नहीं की जाती। ये खास उन स्थितियों के लिए है जहां स्पर्म से जुड़ी समस्या हो। आइए देखते हैं कब ये जरूरी हो जाती है।
1. मेल फैक्टर इनफर्टिलिटी
अगर पुरुष के स्पर्म की संख्या बहुत कम है (जिसे ओलिगोस्पर्मिया कहते हैं), तो सामान्य IVF में फर्टिलाइजेशन मुश्किल होता है। ICSI में सिर्फ एक स्पर्म की जरूरत पड़ती है, इसलिए ये परफेक्ट सॉल्यूशन है। उदाहरण के लिए, अगर स्पर्म काउंट 1 मिलियन से कम है, तो डॉक्टर ICSI सजेस्ट करते हैं।
2. स्पर्म की मूवमेंट खराब होना (अस्थेनोस्पर्मिया)
स्पर्म अगर ठीक से तैर नहीं पाते, तो वो स्त्रीबीज तक नहीं पहुंच पाते। ICSI में डॉक्टर स्पर्म को चुनकर इंजेक्ट कर देते हैं, तो मूवमेंट की समस्या हल हो जाती है।
3. स्पर्म का शेप असामान्य होना (टेराटोस्पर्मिया)
अगर स्पर्म का सिर या पूंछ सही नहीं है, तो वो स्त्रीबीज में घुस नहीं पाते। ICSI इस समस्या को बायपास कर देती है।
4. अगर स्पर्म सर्जरी से निकाले गए हों
जैसे कि टेस्टिकल्स से डायरेक्ट स्पर्म एक्सट्रैक्शन (TESE या PESA)। ऐसे स्पर्म अक्सर कमजोर होते हैं, इसलिए ICSI जरूरी होती है।
5. पहले IVF साइकल फेल हो चुके हों
अगर पिछले IVF में फर्टिलाइजेशन नहीं हुआ, तो अगली बार ICSI ट्राई की जाती है।
6. महिलाओं की समस्या
महिलाओं की तरफ से भी कभी-कभी ICSI की जरूरत पड़ती है। जैसे कि अगर स्त्रीबीज की संख्या कम है या उनकी क्वालिटी खराब है, तो ICSI से बेहतर रिजल्ट मिल सकते हैं।
7. कपल में जेनेटिक प्रॉब्लम
अगर कपल में जेनेटिक प्रॉब्लम है और प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (PGT) करनी है, तो ICSI मदद करती है क्योंकि इससे एम्ब्रियो की क्वालिटी बेहतर होती है।
8. उम्र
कभी-कभी उम्र भी फैक्टर होती है। अगर पुरुष की उम्र 40 से ऊपर है, तो स्पर्म की क्वालिटी कम हो सकती है, और ICSI फायदेमंद साबित होती है। या अगर महिला की उम्र ज्यादा है, तो स्त्रीबीज कम होते हैं, और हर स्त्रीबीज को फर्टिलाइज करने का चांस बढ़ाने के लिए ICSI यूज की जाती है।
लेकिन याद रखें, ICSI हर केस में नहीं की जाती। अगर स्पर्म नॉर्मल हैं, तो सामान्य IVF काफी है। डॉक्टर पहले सिमेन एनालिसिस, हॉर्मोन टेस्ट और अल्ट्रासाउंड करते हैं, फिर decide करते हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि क्या आपको ICSI की जरूरत है, तो अपने डॉक्टर से पूछें। वो आपकी हिस्ट्री देखकर बताएंगे।
इस सेक्शन से आपको क्लियर हो गया होगा कि ICSI किन स्थितियों में लाइफसेवर बन जाती है। अब देखते हैं इसकी प्रक्रिया कैसे होती है।
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ICSI की प्रक्रिया
ICSI की प्रक्रिया IVF जैसी ही है, लेकिन फर्टिलाइजेशन स्टेप अलग है। ये एक स्टेप-बाय-स्टेप प्रोसेस है जो करीब 4-6 हफ्ते लेती है। आइए हर स्टेप को डीटेल में समझते हैं।
स्टेप 1: शुरुआती जांच और प्लानिंग
सबसे पहले डॉक्टर, कपल की मेडिकल हिस्ट्री चेक करते हैं। महिला का अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट (हॉर्मोन लेवल चेक करने के लिए) और पुरुष का सिमेन एनालिसिस होता है। अगर जरूरी हो, तो जेनेटिक टेस्ट भी किए जाते हैं। ये स्टेप 1-2 हफ्ते लेता है। डॉक्टर दवाओं का प्लान बनाते हैं और साइकल शुरू होने का इंतजार करते हैं।
स्टेप 2: ओवेरियन स्टिमुलेशन
महिला को इंजेक्शन दिए जाते हैं जो ओवरी में ज्यादा स्त्रीबीज बनाते हैं। सामान्यतः एक महीने में सिर्फ एक स्त्रीबीज बनता है, लेकिन स्टिमुलेशन से 10-15 बन सकते हैं। ये इंजेक्शन 10-14 दिन तक दिए जाते हैं। बीच-बीच में अल्ट्रासाउंड से मॉनिटरिंग होती है कि स्त्रीबीज सही से ग्रो कर रहे हैं या नहीं। अगर जरूरत पड़े, तो डोज एडजस्ट की जाती है। इस दौरान महिला को थोड़ी सूजन या मूड स्विंग्स हो सकते हैं, लेकिन ये नॉर्मल है।
स्टेप 3: ट्रिगर शॉट और एग रिट्रीवल
जब स्त्रीबीज तैयार हो जाते हैं, तो एक ट्रिगर इंजेक्शन दिया जाता है जो उन्हें परिपक्व (मैच्योर) करता है। 36 घंटे बाद, एग रिट्रीवल होता है। ये एक छोटी सर्जरी है जहां अल्ट्रासाउंड गाइडेड सुई से ओवरी से स्त्रीबीज निकाले जाते हैं। महिला को लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है, तो दर्द कम होता है। ये प्रोसीजर 20-30 मिनट लेता है। निकाले गए स्त्रीबीज को लैब में रखा जाता है।
स्टेप 4: स्पर्म कलेक्शन
उसी दिन पुरुष स्पर्म सैंपल देता है। अगर स्पर्म प्रॉब्लम है, तो सर्जरी से निकाला जा सकता है। स्पर्म को वॉश किया जाता है और ह��ल्दी स्पर्म चुन लिए जाते हैं।
स्टेप 5: ICSI फर्टिलाइजेशन
ये मुख्य स्टेप है। लैब में एम्ब्रियोलॉजिस्ट (एम्ब्रियो स्पेशलिस्ट) माइक्रोस्कोप से एक-एक स्त्रीबीज देखते हैं। एक पतली ग्लास सुई से स्पर्म को पकड़कर स्त्रीबीज के सेंटर में इंजेक्ट किया जाता है। ये बहुत सटीक काम है, जैसे सर्जन का ऑपरेशन। हर स्त्रीबीज के लिए एक स्पर्म इस्तेमाल होता है। इंजेक्शन के बाद, स्त्रीबीज को इनक्यूबेटर में रखा जाता है जहां वो फर्टिलाइज होते हैं। अगले दिन चेक किया जाता है कि फर्टिलाइजेशन हुआ या नहीं। सफलता दर यहां 70-80% होती है।
स्टेप 6: एम्ब्रियो कल्चर
फर्टिलाइज्ड स्त्रीबीज अब एम्ब्रियो बनते हैं। इन्हें 3-5 दिन तक लैब में ग्रो किया जाता है। डॉक्टर चेक करते हैं कि कौन से एम्ब्रियो हेल्दी हैं। अगर PGT जरूरी है, तो यहां बायोप्सी की जाती है।
स्टेप 7: एम्ब्रियो ट्रांसफर
बेस्ट एम्ब्रियो चुनकर महिला के यूटरस में ट्रांसफर किया जाता है। ये एक सिंपल प्रोसीजर है, जैसे पैप स्मियर। कोई एनेस्थीसिया नहीं लगता। ट्रांसफर के बाद, महिला को प्रोजेस्टेरोन दवाएं दी जाती हैं जो प्रेग्नेंसी सपोर्ट करती हैं।
स्टेप 8: प्रेग्नेंसी टेस्ट
ट्रांसफर के 10-14 दिन बाद ब्लड टेस्ट से प्रेग्नेंसी कन्फर्म की जाती है। अगर पॉजिटिव, तो नॉर्मल प्रेग्नेंसी की तरह केयर होती है।
पूरी प्रक्रिया में डॉक्टर की टीम हर स्टेप पर गाइड करती है। अगर पहली बार फेल हो, तो अगली साइकल ट्राई की जा सकती है। याद रखें, धैर्य रखना जरूरी है।
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ICSI के लाभ
ICSI के कई फायदे हैं जो इसे पॉपुलर बनाते हैं। आइए डीटेल में देखें।
सबसे बड़ा लाभ है हाई फर्टिलाइजेशन रेट। सामान्य IVF में फर्टिलाइजेशन 50-60% होता है, लेकिन ICSI में 70-80% तक पहुंच जाता है। खासकर मेल इनफर्टिलिटी में ये गेम-चेंजर है।
दूसरा, बहुत कम स्पर्म से भी काम चल जाता है। अगर स्पर्म काउंट जीरो के करीब है, तब भी सर्जिकल एक्सट्रैक्शन से स्पर्म लेकर ICSI की जा सकती है। इससे उन जोड़ों को उम्मीद मिलती है जिन्हें पहले असंभव लगता था।
तीसरा, जेनेटिक टेस्टिंग आसान हो जाती है। ICSI से बने एम्ब्रियो मजबूत होते हैं, तो PGT से क्रोमोसोम प्रॉब्लम चेक की जा सकती है। इससे हेल्दी बेबी की चांस बढ़ती है।
चौथा, पिछले IVF फेलियर में सक्सेस। अगर IVF में फर्टिलाइजेशन नहीं हुआ, तो ICSI से वो समस्या हल हो जाती है।
पांचवां, महिलाओं के लिए भी फायदेमंद। अगर स्त्रीबीज कम हैं, तो हर एक को फर्टिलाइज करने का बेहतर चांस मिलता है। साथ ही, फ्रोजन स्पर्म या डोनर स्पर्म के साथ भी अच्छा काम करती है।
कुल मिलाकर, ICSI ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट को और एडवांस बना दिया है। लेकिन याद रखें, ये हर किसी के लिए नहीं है - सिर्फ जरूरत पड़ने पर।
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ICSI की सफलता दर
सफलता दर कई फैक्टर्स पर डिपेंड करती है, जैसे उम्र, हेल्थ, और क्लिनिक की क्वालिटी। आइए आंकड़ों से समझें।
फर्टिलाइजेशन रेट: 70-80%। यानी ज्यादातर स्त्रीबीज फर्टिलाइज हो जाते हैं।
लाइव बर्थ रेट: महिला की उम्र के हिसाब से - 35 साल से कम उम्र में 40-50% प्रति साइकल, 35-40 साल में 30-40%, और 40 से ऊपर 20% से कम। पुरुष की उम्र भी प्रभाव डालती है।
ICSI vs IVF: सफलता दर लगभग समान, क्योंकि फर्टिलाइजेशन के बाद प्रोसेस एक जैसा है। लेकिन मेल फैक्टर में ICSI बेहतर।
फैक्टर्स जो सफलता बढ़ाते हैं: अच्छी क्लिनिक चुनें, हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं, स्मोकिंग छोड़ें, वजन कंट्रोल करें। अगर पहली साइकल फेल, तो दूसरी में चांस बढ़ते हैं।
दुनिया भर में लाखों सक्सेसफुल ICSI बेबी हैं। लेकिन कोई गारंटी नहीं - ये एक चांस है।
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ICSI बनाम IVF
| IVF | ICSI | |
| फर्टिलाइजेशन का तरीका | स्पर्म और स्त्रीबीज को एक साथ रखा जाता है ताकि नेचुरली फर्टिलाइजेशन हो। | एक हेल्दी स्पर्म को डायरेक्ट स्त्रीबीज में इंजेक्ट किया जाता है। |
| पुरुष फैक्टर इनफर्टिलिटी | IVF में कठिनाई आ सकती है। | ICSI सबसे असरदार ट्रीटमेंट है। |
| फेल्योर केस | IVF फेल होने पर दोहराना पड़ सकता है। | IVF फेल होने पर ICSI ज्यादा रिजल्ट देता है। |
| सफलता दर | ICSI के मुकाबले कम | IVF से ज्यादा (60-70%) |
| कब उपयोग होता है? | सामान्य इनफर्टिलिटी केस | Male infertility, बार-बार IVF फेल्योर, या जेनेटिक रिस्क वाले केस |
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निष्कर्ष -
ICSI ट्रीटमेंट उन कपल्स के लिए वरदान है जो लंबे समय से पैरेंटहुड का सपना देख रहे हैं लेकिन इनफर्टिलिटी के कारण सफल नहीं हो पा रहे। यह तकनीक IVF से कहीं अधिक एडवांस और असरदार है।
अगर आपको लगता है कि IVF बार-बार फेल हो रहा है या आपके पार्टनर को स्पर्म से जुड़ी कोई समस्या है तो ICSI आपके लिए सही विकल्प हो सकता है।


