घर में बच्चे के मुस्कुराने-खेलने-दौड़ने का मजा कुछ ओर ही होता है; हर कोई ऐसी ख़ुशी की आस रखता है। आधुनिक उपचार, एडवांस्ड टेक्नोलॉजी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की मदत और सही फर्टिलिटी सेंटर के साथ आप माँ-पापा बनने की ख़ुशी अनुभव कर सकते है।
वन्ध्यत्व की समस्या पुरुष एवं महिला दोनों में हो सकती है। तो आइए जानें इनफर्टिलिटी की समस्या, इलाज और अन्य चीजों के बारे में।
Table of Contents
इनफर्टिलिटी क्या है?
आम तौर पर, जब एक महिला की उम्र ३५ वर्ष से कम है और एक वर्ष तक नैसर्गिक तरीके से गर्भ धारण नहीं कर पाती है, तो दंपति को ‘इनफर्टिलिटी’ समस्या होती है।
यदि महिला की उम्र ३५ वर्ष से अधिक है और वह ६ महीने से अधिक समय तक नैसर्गिक तरीके से गर्भधारण नहीं कर पाती है, तो यह भी एक ‘वन्ध्यत्व’ स्थिति है।
दुनिया भर में लगभग ४८ दशलक्ष कपल्स ‘इनफर्टिलिटी’ का अनुभव कर रहे है। अकेले भारत में हर 6 में से 1 दम्पति को ‘इनफर्टिलिटी’ समस्या है। (स्रोत: www.who.int)
इन स्थितियों में फर्टिलिटी चेकअप करना जरुरी है, क्योकि बढ़ती उम्र के साथ इनफर्टिलिटी की समस्या बढ़ने के संभावना अधिक है।
इनफर्टिलिटी की समस्या में क्या करें?
२० से ३५ तक की उम्र में आपको नैसर्गिक तरीके से कंसीव करने की सलाह दी जाती है।
यदि आपकी आयु ३५ से अधिक है और ६ महीने तक नैसर्गिक तरीके से प्रयास करने की बावजूद गर्भ धारण नहीं हो रहां है, तो इस स्थिति में ‘वन्ध्यत्व निवारण तज्ञ’ (fertility doctor) की सलाह लेना फायदेमंद साबित होगा।
यदि आपमें अनियमित माहवारी, PCOD/PCOS, मिसकॅरेंजेस, मेनोपॉज, स्पर्म अब्नोर्मलिटीज, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी और समस्याएँ मौजूद है, तो इस स्थिति में आपको बिना समय गंवाए किसी योग्य फर्टिलिटी डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
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प्राथमिक वन्ध्यत्व (Primary Infertility) : जब किसी दम्पति को एक बार भी गर्भ धारण नहीं हो सका है, तो इसे प्राइमरी इनफर्टिलिटी कहते है।
दुय्यम वन्ध्यत्व (Secondary Infertility) : जब महिला को पहले गर्भ धारण हुआ है या बच्चे है लेकिन दूसरी बार गर्भ धारण करने में परेशानी है, तो इसे सेकेंडरी इनफर्टिलिटी कहते हैं।
अस्पष्टीकृत वन्ध्यत्व (Unexplained Infertility) : एक महिला को बांझपन की समस्या होती है लेकिन कई परीक्षणों के बाद भी बांझपन का निदान नहीं हो पाता है।
इनफर्टिलिटी के लक्षण
पुरुष इनफर्टिलिटी के लक्षण
स्त्री इनफर्टिलिटी के लक्षण
यौन इच्छा में कमी
अनियमित माहवारी
टेस्टिकल में दर्द, गांठ या सूजन।
माहवारी में पेट में दर्द
स्खलन समस्या / इरेक्टाइल डिसफंक्शन
PCOD/PCOS
स्खलन के दौरान वीर्य की थोड़ी मात्रा
थायरॉईड/ हार्मोनल समस्याएँ
चेहरे और शरीर के बालों का झड़ना
पेट में दर्द, सूजन (inflamation)
कामेच्छा में कमी (Loss of Libido)
महिलाओं में पुरुष लक्षणों का बढ़ना। उदा. – चेहरे, शरीर आदि पर अतिरिक्त बाल आना
नपुंसकता
वजन का ज्यादा बढ़ना या घटना
ओबेसिटी
एपेटाइट चेंज
एपेटाइट चेंज
इनफर्टिलिटी स्थिति में फर्टिलिटी सेंटर में जाने के फायदे
जानिए फर्टिलिटी सेंटर में कैसे होता है इलाज :
इन डेप्थ इवैल्यूएशन: एक फर्टिलिटी डॉक्टर यह जानने की कोशिश करता है की स्त्रीबीज और शुक्राणु फर्टिलाइज होने में क्या कठिनाई है ? आप क्यों गर्भ धारण नहीं कर पा रहे है ? आदि। फर्टिलिटी समस्या का निदान करने के लिए फर्टिलिटी समस्या को गहराई से जाना जाता है। “इन डेप्थ इवॅल्यूएशन” किया जाता है; जिससे सटीक निदान हो सके और आपको योग्य ट्रीटमेंट मिल सके।
केस हिस्ट्री: साथ ही आपकी केस हिस्ट्री ली जाती है। इसमें आपको पहले से मौजूद बीमारियाँ और उपचार, अनुवांशिक बीमारिया, जीवनशैली, व्यसन आदि चीजों को फर्टिलिटी समस्या को ढूंढा जाता है।
सटीक निदान: आपके फर्टिलिटी समस्या का सटीक निदान करने के लिए कुछ जाँच की जाती है।
सक्सेसफुल ट्रीटमेंट प्लॅन: आपकी समस्या का ”सही निदान, मतलब इलाज के लिए सही राह” मिलती है। जिससे सफलता के चान्सेस बढ़ते है।
एक छत के निचे सारी सुविधाएँ (under one roof) : फर्टिलिटी सेंटर में आपकी आवश्यकता अनुसार ब्लड टेस्ट्स, युरीन टेस्ट्स, सोनोग्राफी जैसे ‘बेसिक टेस्ट्स’ और ‘एडवांस्ड टेस्ट्स’ भी मौजूद होते है। फर्टिलिटी मेडिकेशन्स से लेकर ओव्यूलेशन इंडक्शन, IUI, IVF आणि अडवान्सड IVF तकनीक एक ही जगह मिलते है।
एक्स्पर्ट इन्फर्टिलिटी डॉक्टर्स: सफल गर्भधारण के लिए अनुभवी, कुशल और विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम काम कर रही है।
समय और पैसो की बचत होती है।
अनुवांशिक विकारों की आशंका के लिए उपयुक्त : गंभीर आनुवंशिक या क्रोमोसोम संबंधी बीमारियों का पारिवारिक इतिहास होने पर PGD, PGD-A जैसे DNA टेस्ट्स फर्टिलिटी सेंटर्स में उपलब्ध होते हैं। जिनके जरिये स्वस्थ और उच्चतम गुणवत्ता का DNA ढूंढ़ना संभव है। ऐसे बीज फर्टिलाइज़ेशन के लिए चुननेसे स्वस्थ बच्चा होता है।
जब चाहे बन सकते है माँ : अगर आप शिक्षा, करियर को प्राथमिकता दे रही हैं और जल्द मां नहीं बनना चाहती हैं तो स्त्रीबीज/स्पर्म या भ्रूण को फ्रीज किया जा सकता है। इसके आलावा अगर आप कैंसर जैसी बीमारी का इलाज करने जा रही है तो ऐसे ट्रीटमेंट्स आपके फर्टिलिटी पर प्रभाव डालते है। ऐसे स्थितियोमे ”क्रायोप्रिजर्वेशन” की मदद से जब चाहे माँ बन सकती है।
व्हास डिफ़रेंस ब्लॉकेज (शुक्राणु बहार नहीं आ पाना)
ओवुलेशन समस्या
रेट्रोग्रेड एज्यक्युलेशन (वीर्य बहार आने की जगह ब्लैडर में जाना)
हार्मोनल इम्बॅलन्स
धूम्रपान या मद्यपान इ.
पिट्युटरी ट्युमर
ओबेसिटी
एन्डोमेट्रिओसिस
अधिक ताणतणाव
फायब्रॉइड्स या पॉलीप्स
लो स्पर्म काउंट (Oligospermia)
इन्फेक्शन्स (सेक्स्युअल ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन्स)
निल शुक्राणू (Azoospermia)
POI
कैंसर ट्रीटमेंट
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर
इन्फेक्शन्स
PCOD/PCOS
लैंगिक संक्रमित रोग
माहवारी से जुडी समस्याएँ
कमर, वृषण, पुरुष जननांग या अंडकोश की सर्जरी
जन्मजात ऑर्गन्स नहीं होना
अंडकोष का अधिक गर्म होना
Pelvic adhesions
औद्योगिक रसायन
सर्विकल ऍबनॉर्मलिटीज
वजन अधिक या कम होना
खून की कमी
कैंसर ट्रीटमेंट
व्यसन/पुअर लाइफस्टाइल
इनफर्टिलिटी के कारण
इनफर्टिलिटी निदान एवं इलाज की स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस
पहली स्टेप डॉक्टर के साथ कन्सल्टेशन ये होती है। इस समय जरुरी टेस्ट्स और केस हिस्टरी लिया जाता है। जिसमें अनुवांशिकता, पिछले प्रजनन उपचार, पुरानी बीमारी का इलाज, प्रजनन अंगों की सर्जरी, गर्भपात, संक्रमण, हार्मोनल समस्याएं, व्यसनों, आहार संबंधी आदते जैसी बहुत सारी जानकारी ली जाती है। साथ ही सकारात्मकता या मनोबल बढ़ाने की कोशिश करता है।
दूसरी स्टेप डायग्नोसिस करने के लिए आवश्यकता अनुसार टेस्ट्स करना यह होती है। आगे जानिए कोनसी टेस्ट्स की जाती है।
तीसरी स्टेप इनफर्टिलिटी समस्या के अनुसार ‘व्यक्तिगत उपचार योजना’ (Personalized Treatment Plan) देना यह होती है।
महिला और पुरुषो के इनफर्टिलिटीटेस्ट्स
जब कपल्स फर्टिलिटी सेंटर में आते है तब, अक्सर देखि जानेवाली स्थिति यह होती है की, अकेली महिलाओ की बहुत सारी जाँच हुई होती है और पुरुषो की एक भी जाँच नहीं की होती है। इसमें बहुत सारा समय बर्बाद होता है। इसलिए फर्टिलिटी सेंटर में महिला एवं पुरुष दोनों की जाँच कराइ जाती है ताकि सटीक निदान और प्रभावी उपचार से जल्दी पोजिटिव्ह रिज़ल्ट मिल सके।
ओवेरियन रिजर्व टेस्ट: यह एक ब्लड और इमेजिंग टेस्ट है। ओव्हरीज में बीजों की संख्या और गुणवत्ता को दर्शाती है।
हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी (HSG): एक तरल पदार्थ को गर्भाशय ग्रीवा में इंजेक्ट किया जाता है। एक्स-रे के जरिये देखते हैं कि यह पदार्थ फैलोपियन ट्यूब से कैसे चलता है। इससे यह समझता है की फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक है की नहीं।
लैप्रोस्कोपी: रिप्रोडक्टिव ऑर्गन की स्थिति की जांच करने के लिए गर्भाशय में एक रॉड जैसा उपकरण डालक्र जाँच की जाता है।
ट्रांसवजाइनल सोनोग्राफी: अंडाशय, गर्भाशय के स्थिति की जांच करने के लिए टेलीस्कोप वाला एक उपकरण गर्भाशय में डाला जाता है।
Abdominal Altrasaund : पेट पर प्रोब रखकर कंप्यूटर पर पेट के अंगों की स्थिति की जाँच की जाती है।
हिस्टेरोस्कोपी: यह एक फ्लेक्सिबल और पतला उपकरण है जिसमें कैमरा लगा होता है। यूटेरस में डालकर हिलाया जाता है और जाँच की जाती है।
सलाइन सोनोहिस्टेरोग्राम (SIS) : स्ट्रक्चरल प्रॉब्लेम्स, फायब्रॉइड्स, पॉलीप्स, अस्तर की स्थिति की जाँच करने के लिए यूटेरस सलाइन के पानी से भर दिया जाता है।
पुरुषों की टेस्ट्स
वीर्य विश्लेषण (Semen Analysis) : वीर्य विश्लेषण में शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता, मॉर्फोलॉजी, प्रोग्रेसिव्ह मोटिलिटी, इन्फेक्शन्स जैसी कई चीजों की जाँच की जाती है। यह पुरुष प्रजनन क्षमता की स्थिति को दर्शाता है। प्रायमरी लेव्हल पर ही यह टेस्ट की जाती है।
स्क्रोटल अल्ट्रासाउंड: टेस्टिकुलर समस्याएँ, वैरिकोसेल की जाँच की जाती है।
ट्रांसरेक्टल अल्ट्रासाउंड: स्पर्म्स बाहर आने में ऑब्स्ट्रक्शंस और प्रोस्टेट की जाँच करता है।
हार्मोनल टेस्ट्स : टेस्टोस्टेरॉन, अँड्रोजिन, प्रोलॅक्टिन, FSH जैसे रिप्रॉडक्टिव्ह हार्मोन्स की मात्रा टेस्ट की जाती है।
युरीन टेस्ट : स्खलन के बाद एक मूत्र परीक्षण यह जांचने के लिए किया जाता है कि शुक्राणु मूत्राशय में जा रहे हैं या नहीं।
जेनेटिक टेस्ट: अगर स्पर्म कन्सट्रेशन कम है तो क्रोमोजोम की जांच के लिए यह टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट से जेनेटिक बीमारियों का भी पता चल सकता है।
टेस्टिक्युलर बायोप्सी : स्पर्म प्रोडक्शन हो रहा है की नहीं यह जाँच की जाती है।
निदान अनुसार उपचार
ओव्यूलेशन इंडक्शन : इसकी मदद से सोनोग्राफी के जरिए समय-समय पर स्त्रीबीज कैसे ग्रो कर रहे है यह जांच की जाती है। इससे स्त्रीबीज ओवुलेट हुए की नहीं यह भी पता चलता है। जैसे ही ओवुलेशन होता है डॉक्टर सेक्स्युअल इंटरकोर्स की सलाह देते है। साथ ही कुछ दवाइयाँ देते है।
दवाइयाँ : हार्मोनल इम्बैलेंस और इन्फेक्शन्स की स्थिति को ट्रीट करने के लिए दवाइयाँ या इंजेक्शंस दिए जाते है।
महिलाओं में सर्जरी: फाइब्रॉएड, पॉलीप्स, खराब झालेल्या किंवा ब्लोक्ड फैलोपियन ट्यूब्ज़ निकलने के लिए लैप्रोस्कोपीक सर्जरी, हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी या ट्यूबल सर्जरी की जाती है। adhesions मतलब यदि अगर दो अंग एक दूसरे से चिपके हुए हैं, तो इनको अलग किया जाता है।
पुरुषों में सर्जरी : वास डेफरेंस मतलब ऐसी ट्यूब जो शुक्राणुओं को टेस्टिकल में ले जाती है। वहस डिफ़रेंस अगर ब्लॉक हो, वैरीकोसेल समस्या हो, गांठ हो तो सर्जरी की मदत से इलाज किया जाता है।
सेक्श्युअल इंटरकोर्स जैसी समस्या का इलाज : इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या शीघ्रपतन की समस्या का इलाज काउंसेलिंग और दवा से किया जाता है।
IUI : इंट्रा युटेरियन इन्सेमिनेशन : जब बुनियादी उपचार विफल हो जाता है, तो एक कदम आगे जाकर आईयूआई उपचार देने का निर्णय लिया जाता है। आईयूआई उपचार में, पुरुष के स्पर्म्स कलेक्शन किया जाता है, स्पर्म वॉशिंग किया जाता है और फिर महिला के यूटेरस में फैलोपियन ट्यूब के नजदीक छोड़ दिया जाता है। इससे प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में गर्भधारण की संभावना 10-15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) : इसमें मॅच्युअर एग्ज रिट्राईव्ह/कलेक्ट किए जाते है और एक लैब में एक ट्रे में शुक्राणु के साथ निषेचित किया जाता है। इससे बना एम्ब्रियो वापस महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है। यदि पुरुषो में नच्युरली एज्यक्युलेशन नहीं हो रहा है, या रेट्रोग्रेड एज्यक्युलेशन की समस्या है, ब्लाडर में शुक्राणु जमा हो रहे है, तो TESA, MESA, PESA, MICRO-TESE, TESE जैसे आधुनिक इलाज किए जाते है। जिससे गर्भधारण सम्भावना बढ़ जाती है।
IVF : इन विट्रो फर्टिलायझेशन यह एक लोकप्रिय ART तकनीक है। आईवीएफ की सफलता दर भी अधिक है।
फर्टिलिटी सेंटर के आधुनिक इलाज :
आजकल हम गर्भधारण के लिए उपलब्ध कई “आधुनिक प्रजनन उपचार” के बारे में सुनते हैं; लेकिन उपचार वास्तव में क्या हैं? वे कब और कैसे किए जाते हैं? इनके बारे में जानने के लिए आगे पढ़े। नीचे बताए गए सभी आधुनिक उपचार को ART (एडवांस रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी) कहा जाता है।
IVF : बेसिक IVF ट्रीटमेंट में स्त्रीबीज और शुक्राणु को फर्टिलाइज किया जाता है। अच्छी क्वालिटी के शुक्राणु को सिलेक्ट करके निषेचन के लिए ट्रे में रखा जाता है। इस समय बीजों का नैसर्गिक तरीके से फर्टिलाइज़ेशन होता है।
IVF-ICSI : जब स्त्रीबीज के साथ शुक्राणु का निषेचन नहीं हो पता तब एडवांस्ड ऍडव्हान्स ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection) की मदद से शुक्राणु स्त्रीबीज में इंजेक्ट कराकर गर्भ बनाया जाता है। लो स्पर्म काऊंट (Oligosparmia), शुक्राणु की गति कम होना (low sperm motility), शुक्राणु का सर छोटा या बड़ा होना, बैड मॉर्फोलॉजी, फंक्शनल कपैसिटी कम होना, एज्यक्युलेशन के बाद सर्व्हाइव्ह नहीं कर पाना, अचल/इमोटाइल स्पर्म, इन चीजों से स्पर्म्स स्त्रीबीज को फर्टाइल नहीं कर सकते। तब ICSI ट्रीटमेंट फायदेमंद होता है।
IMSI : इंट्रा-साइटोप्लाज्मिक मॉर्फोलॉजिकली सेलेक्टेड स्पर्म इंजेक्शन : ICSI की तरह स्पर्म स्त्रीबीज में इंजेक्ट किया जाता है; लेकिन इस प्रक्रिया में अच्छी गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं का सावधानीपूर्वक चयन किया जाता है। माइक्रोस्कोप के जरिये स्पर्मेटोज़ोआ को पहले 6600x तक बढ़ाया जाता है और शुक्राणु के आकार और संरचना में दोषों की जाँच के लिए। अच्छे सिर, गर्दन, पूंछ वाले शुक्राणु फर्टिलाइज़ेशन के लिए सिलेक्ट किए जाते है। साथ ही DNA फ्रॅगमेंटेशन रेट की जाँच की जाती है।
PICSI : यदि दम्पति ने मिसकैरेज का अनुभव किया हो, DNA फ्रेगमेंटेशन रेट कम हो, ICSI ट्रीटमेंट फेल हुआ हो, तो इन स्थिति में PICSI अच्छे रिज़ल्ट दे सकता है। इस प्रक्रिया में न केवल शुक्राणु काव्हिज्युअल ऑब्सर्व्हेशन किया जाता है, बल्कि शुक्राणु का केमिकल आणि बायोलॉजिकल स्टडी करके सिलेक्शन किया जाता है। इसमें शुक्राणु की स्ट्रेंथ, मॅच्युरिटी और ऍक्टिव्हिटी का निरिक्षण किया जाता है।
LAH (लेजर असिस्टेड हॅचिंग) : जब भ्रूण की बाहरी परत मोटी होती है तो इस परत को एलएएच की मदद से पतला किया जाता है। जिससे भ्रूण रोपण (एम्ब्रियो इम्प्लांटेशन) सफल होता है।
क्रायोप्रिझर्वेशन (Cryopreservation) : यह एक फ्रीज़िंग तकनीक है। इस तकनीक से स्पर्म, ओवुम, एम्ब्रियो, टिश्यू को कम टेम्परेचर में रखा जाता है। यदि आप शिक्षा, करियर को प्रायोरिटी देना चाहती है; तो आप क्रायोप्रिजर्वेशन टेक्निक से बीज/एम्ब्रियो फ्रिज करके सेफ कर सकती है। इसके अलावा कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज जो ओवुम की क्वालिटी ख़राब करता है, और इनफर्टिलिटी समस्या पैदा कर सकता है, ऐसे इलाज शुरू करने से पहले आप फ्रीजिंग तकनीक का इस्तेमाल करके इलाज के बाद माँ बन सकती है।
PGT (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग) : इस प्रक्रिया का उपयोग करके यह जांचना संभव है कि भ्रूण स्थानांतरण से पहले भ्रूण में कोई जन्मजात दोष तो नहीं है। इससे स्वस्थ बच्चा पैदा हो सकता है। यह भ्रूण में आनुवंशिक समस्याओं या गुणसूत्रों की असामान्य संख्या का पता लगाने में भी मदद करता है।
PGD (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस) : यदि गंभीर या जानलेवा बीमारियों का पारिवारिक इतिहास है, तो पीजीडी ऐसे दोषों को बच्चे में जाने से रोक सकता है।
PGS (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रिनींग) : जेनेटिक बीमारियों को कम किया जा सकता है। पीजीएस जांच करता है कि भ्रूण में कोशिकाओं में गुणसूत्रों की सामान्य संख्या है या नहीं।
ब्लास्टोसिस्ट ट्रान्स्फर : स्त्रीबीज और स्पर्म के निषेचन के बाद बनने वाले ब्लास्टोसिस्ट को 5-6 दिनों के बाद महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
एम्ब्रियो ट्रान्स्फर : स्त्रीबीज और शुक्राणु के निषेचन के बाद, भ्रूण को 10-12 दिनों के बाद महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
SET (सिक्वेन्शियल एम्ब्रियो ट्रान्सफर) : दो भ्रूण मासिक धर्म चक्र के विभिन्न चरणों में अलग-अलग समय पर महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित किए जाते हैं।
FAQ
पुरुष इनफर्टिलिटी का निदान कैसे किया जाता है?
शुरवाती परीक्षण में एक चिकित्सा इतिहास, शारीरिक परीक्षण, शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा को मापने के लिए वीर्य विश्लेषण परीक्षण और सामान्य हार्मोन परीक्षण शामिल हैं।
महिला इनफर्टिलिटी के उपचार क्या हैं?
ओव्यूलेशन की प्रोब्लेम्स का इलाज दवाओं के साथ होने की संभावना है, और एंडोमेट्रियोसिस, ट्यूबल ब्लॉकेज या फाइब्रॉएड जैसी समस्याओं में ज्यादातर लेप्रोस्कोपिक या हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी की आवश्यकता होती है। आईवीएफ ऐसी अधिकांश स्थितियों वाली महिलाओं को गर्भ धारण करने में भी मदद कर सकता है।
महिला इनफर्टिलिटी का निदान कैसे किया जाता है?
महिला इनफर्टिलिटी का आमतौर पर एक अल्ट्रासाउंड के साथ निदान किया जाता है जो अंडाशय और गर्भाशय की जांच करता है। इसके साथ ही आपकी ट्यूबल स्थिति की जांच के लिए एचएसजी परीक्षण किए जाते हैं, और रक्त परीक्षण आपके हार्मोनल संतुलन की जांच करने में मदद करते हैं।
फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में कितना समय लगता है?
उपचार के प्रकार, विशिष्ट स्थिति, बांझपन के कारण के आधार पर, उपचार की अवधि हर जोड़े के लिए अलग-अलग होती है।
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